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श्री नेमिचंद जी
उपदेश सिद्धान्त
रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
अर्थः- चौथ, नवमी एवं बारस आदि कई अन्य भी पर्व हैं जिनमें मिथ्यात्व, विषय - कषाय की वृद्धि होती हैं ऐसे समस्त प्रकार के मिथ्या पर्वों के आचरण करने वालों को सम्यग्दर्शन नहीं है, वे सब मिथ्यादृष्टि ही हैं ।। ७८ ।।
कुटुम्ब का मिथ्यात्व हरने वाले विरल हैं
जह अइ कलम्मि खुत्तं, सगडं कड्ढति केवि धुरि धवला । तह मिच्छाउ कुटुंबं, इह विरला केवि कड्ढति । । ७६ । ।
अर्थः- जैसे अत्यंत कीचड़ में फँसी हुई गाड़ी को कोई बड़े बलवान वृषभ ही बाहर खींच पाते हैं वैसे ही इस लोक में मिथ्यात्व रूपी कीचड़ में फँसे हुए अपने कुटुंब को कोई उत्तम विरले पुरुष ही उसमें से बाहर निकाल पाते हैं ।।
भावार्थः- जो स्वयं दृढ़ श्रद्धानी हैं वे अपने समस्त कुटुंब को उपदेशादि के द्वारा मिथ्यात्व से रहित करते हैं सो ऐसे धर्मात्मा बहुत थोड़े हैं ।। ७६ ।।
प्रकट भी जिनदेव की अप्राप्ति
जह बद्दलेण सूरं महियल पयडं पि णेअ पिच्छंति । मिच्छत्तस्सय उदये, तहेव ण णिअंति जिणदेवं ।। ८० ।।
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भव्य जीव