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उपदेश सिद्धान्त की रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
RT चढ़ाई जाती है उस पापनवमी को भी कई लोग पूजते श्री नेमिचंद जो हैं और श्रावक कहलाते हैं सो हाय ! हाय !! वे तो वीतराग भव्य जीवा
देव की निन्दा कराते हैं। लोग कहते हैं कि 'देखो! जैनी भी ऐसा कार्य करते हैं। इससे सच्चे जैनियों को लज्जा आती है और जैनधर्म की । अप्रभावना होती है || ७६।।
कुल को भव समुद्र में डुबाने वाला कौन जो गिह कुडुंब सामी, संतो मिच्छत्त रोयणं कुणई। तेण सयलो वि वंसो, परिखित्तो भव समुद्दम्मि।। ७७।।। अर्थः- जो घर के कुटुम्ब का स्वामी हो करके मिथ्यात्व की रुचि और प्रशंसा करता है उसने समस्त कुल को संसार समुद्र में डुबा दिया।।
भावार्थ:- कुल का स्वामी यदि मिथ्या देवादि की रुचि-सराहना करता है तो उसके कुल के सभी लोग वैसा ही आचरण करते हैं और कहते हैं कि 'हमारे बड़े ऐसा ही करते आये हैं। इस प्रकार परिवार के सब ही जीवों के मिथ्यात्व की पुष्टि हो जाने से वे संसार में ही भ्रमण करते हैं अतः घर के स्वामी के द्वारा मिथ्यात्व की थोड़ी सी भी प्रशंसादि की जानी योग्य नहीं है।। ७७ ।।
मिथ्या पर्यों के आचरने वालों को सम्यक्त्व नहीं कुण्ड चउत्थी णवमी, वारस पिण्डप्पदाण पमुहाई। मिच्छत्त भावगाइ, कुणंति तेसिं ण सम्मत्तं ।। ७८।।