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श्री नेमिचंद जी
उपदेश सिद्धान्त
रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
शुद्ध हृदय वाले पुरुषों का स्वभाव
दोसो जिणिंद वयणे, संतोसो जाण मिच्छपावम्मि | ताणं पि सुद्ध हियया, परमहियं दाउमिच्छंति । । ६२ । । अर्थः- जिनको जिनेन्द्र के वचनों के प्रति तो द्वेष है और मिथ्यात्व पाप में हर्ष है-ऐसे जीवों को भी निर्मल चित्त वाले सत्पुरुष परम हित देने की इच्छा रखते हैं ।।
भावार्थ:- सज्जन पुरुष तो महा मिथ्यादृष्टियों के भी भले ही का उपदेश देते हैं परन्तु उनका भला होना न होना तो भवितव्य के आधीन है ।। ६२ । ।
विष उगलते हुए सर्प के प्रति भी करुणा
अहवा सरल सहावो, सुअणा सव्वत्थ हुंति अवियप्पा | छंडंति विसभराण वि, कुणंति करुणा दुहाहाणं ।। ६३ । ।
अर्थः- अथवा सरल स्वभावी सज्जन पुरुष सभी जीवों के प्रति समान भाव रखते हैं, किसी का भी बुरा नहीं चाहते। वे तो विष के समूह को उगलते हुए सर्प के प्रति भी दयाभाव रखते हैं सो ऐसा सज्जनपना सम्यग्दृष्टियों में ही होता है ।। ६३ ।।
अब सम्यग्दर्शन के होने का दुर्लभपना दिखाते हैं :गृहस्थ को सम्यग्दर्शन महा दुर्लभ है
गिवावार विमुक्के, बहु मुणि लोए वि णत्थि सम्मत्तं । आलंबण- णिलयाणं, सद्धाणं भाय ! किं भणिमो ।। ६४ । ।
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भव्य जीव