SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश सिद्धान्त की रत्नमाला श्रा नेमिचंद भंडारी कृत भव्य जीव ॐ अर्थ:- मिथ्या कथन में एकांत को प्राप्त जो मिथ्यावादी श्री नेमिचंद जी हैं वे पुरुष समस्त श्रावक समूह में धर्म में स्थित धर्मात्माओं के प्रभाव का पराभव करने में उद्यमी होते हैं || ५१।। धर्मात्माओं के आश्रयदाता जयवंत हैं तं जयइ पुरिसरयणं, सुगुणटुं हेमगिरि वर महग्छ । जस्सासयम्मि सेवइ, सुविहि रउ सुद्ध जिणधर्म।। ५२।। अर्थः- भले आचरण में तत्पर पुरुष जिनके आश्रय से निर्मल जिनधर्म का सेवन करते हैं वे पुरुषों में रत्न समान पुरुषोत्तम जयवंत हैं। कैसे हैं वे सत्पुरुष ? सम्यग्दर्शन आदि उत्तमोत्तम गुणों के धारक हैं और हेमगिरि' समान बड़ा उनका मूल्य है।। __ भावार्थ:- जिनकी सहायता से जिनधर्मी धर्म का सेवन करें वे पुरुष धन्य हैं क्योंकि साधर्मियों से प्रीति करना है सो सम्यक्त्व का अंग है।। ५२।। धर्माधार देने वाला अमूल्य है सुरतरु चिंतामणिणो, अग्घं ण लहति तस्स पुरिसस्स। जो सुविहि रय जणाणं, धम्माधार सया देई।। ५३।। अर्थः- जो पुरुष शास्त्राभ्यास आदि भला आचरण करने वाले जीवों को सदाकाल धर्म का आधार देता है और उनका निर्विघ्न शास्त्राभ्यास आदि होता रहे ऐसी सामग्री का मेल मिलाता है उस पुरुष का १. अर्थ-स्वर्ण का मेरु पर्वत ।
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy