SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नेमिचंद जी उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला नेमिचंद भंडारी कृत धर्मात्मा कहाँ पराभव पाता है। समयविओ असमत्था, सुसमत्था जत्थ जिणमए अविओ । तत्थ ण वड्ढइ धम्मो, पराहवं लहइ गुणरागी । । ४६ । । अर्थः- जहाँ पर जैन सिद्धांत का ज्ञाता गृहस्थ तो असमर्थ हो और अज्ञानी समर्थ हो वहाँ धर्म की उन्नति नहीं होती और धर्मात्मा जीव पराभव' ही प्राप्त करता है ।। भावार्थ:- जहां कोई जिनवाणी का मर्म नहीं जानता हो वहाँ पर रहना उचित नहीं है ।। ४६ ।। अमार्गसेवी धनिक धर्मार्थी को पीड़ादायक जंण करइ अइ भावं, अमग्गसेवी समत्थओ धम्मे । ता लद्धं अह कुज्जा, ता पीडइ सुद्ध धम्मत्थी । । ५० ।। १. अर्थ - अनादर । अर्थः- जो धनादि संपदा से युक्त होने पर भी धर्म में अत्यन्त अनुराग नहीं करता वह कुमार्गी जीव प्राप्त धन को निष्फल गंवाता है और शुद्ध धर्म के इच्छुक जीवों को पीड़ा देता है ।। ५० ।। मिथ्यावादी धर्मात्माओं का अनादर करते हैं जइ सव्व सावयाणं, एगत्तं जंति मिच्छवायम्मि । धमत्थि आण सुन्दर, ता कहण पराहवं कुज्जा ।। ५१ । । ३२ भव्य जीव
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy