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गाथा-७६
में आया? अपनी अस्ति, अपने से है और अपना पर से नहीं होनापना भी अपने से है - ऐसा भगवान आत्मा को विचार करना... ।
अथवा इस जीव के कारण जीव-अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्वों की व्यवस्था होती है।.... लो, उसकी दशा में सात तत्त्व होते हैं न? ऐसा विचारना। आत्मा, सात नय से विचारना । सात नय से (विचारना) ठीक है। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ ऐसी थोड़ी सूक्ष्म बात है।
नव प्रकार से विचार करें तो आत्मा नव केवल लब्धिरूप है। उसमें मात्र आठ नहीं आया, आठ है नहीं। दो, तीन, चार, पाँच, छह, नौ, सात, ऐसे बोल लिये हैं। समझ में आया? नौ प्रकार से विचार करे तो केवली भगवान को नवलब्धि होती है, उस रूप से में हूँ। अभी ऐसा मैं हूँ, ऐसा, हाँ! अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, इस लब्धि की पर्याय की प्राप्ति को योग्य मैं ही स्वयं आत्मा हूँ। समझ में आया? स्वयं प्राप्ति के योग्य है न? दूसरा कौन दे दे? ऐसा है। समझ में आया? नौ प्रकार - अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त दान, अनन्त लाभ, अनन्त भोग, अनन्त उपभोग... एक बार भोगना, बारम्बार भोगना, अनन्त वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्ररूप... लो यह नौ हुए। नवलब्धि का धारक मैं हूँ। यह सब आँकड़े याद रहें ऐसे नहीं हैं परन्तु उनमें से भाव तो याद रहता है न?
मुमुक्षु : आँकड़े का क्या काम है?
उत्तर : आँकड़े का किसलिए करे? बात ठीक कहते हैं । आँकड़े का काम है या भाव का काम है ?
__ अथवा यह आत्मा पुण्य-पापसहित सात तत्त्व ऐसे नौ पदार्थों में स्थित होता है।लो! है न? पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष की पर्याय में टिकनेवाला आत्मा है या नहीं? आहा...हा...! ठीक-ठीक विचार किया है। यह बहुत आता है। पञ्चास्तिकाय' में आता है न? एकरूप से, दोरूप से, तीनरूप से, चाररूप से आता है। उसमें भी आता है, उन लोगों में भी आता है। देवाधिगम' में सब भंग श्वेताम्बर में आते हैं।
जीव की अपेक्षा से नौ पदार्थ का विचार है। इस प्रकार आत्मा को अनेक