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गाथा - १०६
पूर्णानन्द का नाथ अनन्त गुण का पिण्ड, उसका भान करके परिणति निर्मल आदि हुई; इसलिए वह परमात्मा निरंजन देव है । उसे परमात्मा निरंजनदेव कहा जाता है।
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यह अपने शरीर के अन्दर बसनेवाला आत्मा है..... यह सब परमात्मा का जो स्वरूप कहा, वह तेरे देह के भीतर - तेरे गर्भ में पड़ा है। समझ में आया ? माता के गर्भ में लड़का हो तो उसे मनुष्य जन्मे । अन्दर में बन्दर हो और मनुष्य जन्मे ? समझ में आया ? बन्दरी के पेट बन्दर है तो बन्दर हो तो बन्दर जन्में । ऐसे ही भगवान के गर्भ में अनन्त परमात्मा ऐसे पड़े हैं, रहते हैं । आहा... हा... ! समझ में आया ?
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कहते हैं कि जो अपने शरीर के अन्दर बसनेवाला आत्मा है । इस देह - देवालय में प्रभु विराजमान हैं। उसे यहाँ परमात्मा (आदि) सभी विशेषण उसे कहे गये हैं। वह अन्दर वस्तुरूप से विराजमान है। पर्यायदृष्टि में भले फर्क हो ( परन्तु) वस्तुरूप से तो ऐसा का ऐसा परमात्मा विराजमान है। समझ में आया ? आहा... हा...! यह भगवान तो ऐसा कहते हैं कि मेरे प्रति भी लक्ष्य छोड़ और तेरा लक्ष्य कर तो तू भगवान होगा। मुँह के सामने ग्रास भगवान को नहीं रुचता, (बाकी) सबको रुचता है। मुँह में पहला ग्रास लेकर फिर खिलाते हैं या नहीं। पिता और पुत्र साथ जीमते हों तो पहला खाये और फिर लड़के को ग्रास दे, एक थाली में खाते हों तो, फिर वह स्वयं चबाता जाये और थोड़ा उसे दे । वीतराग कहते हैं कि परन्तु यह नहीं, यहाँ तो मुँह में ग्रास की ही न है । (हमारी) भक्ति करो तो तुम्हारा कल्याण होगा। भगवान इनकार करते हैं । आहा....हा... ! (क्योंकि) हम तुझसे परद्रव्य हैं न प्रभु! मेरे प्रति लक्ष्य जाने से तुझे राग होगा। इसलिए हम ऐसा कहते हैं परमात्मा की वाणी में ऐसा आता है कि तू तेरे स्वभाव के आश्रय में जा तो परमात्मा होगा। समझ में आया? वह देह में बसा हुआ है, 'देह के मध्य में' भाषा प्रयोग की है, हाँ ! फिर, अपने शरीर के अन्दर वसइ, तासु ण विज्जइ भेउ उन दोनों में कोई भेद न जान। ऐसे जो परमात्मा कहे, जितने गुण उतने नाम (कहे) वे सब तुझमें हैं, तू भेद न जान। आहा... हा... ! समझ में आया ? विशेष कहेंगे........
(मुमुक्षु
प्रमाण वचन गुरुदेव !)
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