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योगसार प्रवचन (भाग-२)
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जितना ज्ञेय लोकालोक, वह ज्ञान ज्ञेयगत है । इस अपेक्षा से; आ नहीं गया, जानने की अपेक्षा से (कहा है) और ज्ञान में ज्ञेय आये हैं । ज्ञान, ज्ञेयगत है और ज्ञेय, ज्ञानगत है । लोकालोक ज्ञेय ज्ञान में – जानने की पर्याय में आ गये हैं । वह नहीं परन्तु उस सम्बन्धी का ज्ञान इस अपेक्षा से ज्ञेय ज्ञानगत है - ऐसा कहा जाता है। समझ में आया ? आहा...हा... ! ऐसा केवल ऐसा उसका.... उसे संक्षिप्त कर डालना कि ऐसा केवल नहीं होता, ऐसा नहीं होता। अमुक नहीं होता ! अमुक नहीं होता, केवलज्ञान में शंका करने लगे, हाँ! भूत, भविष्य में ऐसा नहीं होता, अमुक ऐसा नहीं होता । भगवान ! यह वस्तु का स्वभाव है। भाई! उसमें ऐसे उलटे तर्क को स्थान नहीं होता । सुलटे तर्क को स्थान होता है । श्रुतज्ञानरूपी तर्क को (स्थान होता है) । कहो, समझ में आया ?
इसे रुद्र कहा जाता है क्योंकि जैसे रुद्र दूसरे को भस्म करता है, वैसे भगवान आत्मा आठ कर्म को भस्म कर डालता है। भगवान आत्मा ही रुद्र है। दूसरा रुद्र वह यह नहीं परन्तु यह आत्मा, वह रुद्र । समझ में आया ? आठों की ही कर्मों का भुक्का ! उसका अर्थ - अवस्था की कमजोरी का नाश । इस कारण रजकण की पर्याय आठ कर्म की है, उसका रूपान्तर उसकी पर्याय में जो कर्मरूप अवस्था है, वह अवस्था रूपान्तर होकर साधारण जड़ की अवस्था - पुद्गल की अवस्था हो जाती है । यह आठ कर्म का नाश (किया) ऐसा कहा जाता है । यह भगवान आत्मा रुद्र है। समझ में आया ? शंकर ने तीसरी आँख से काम को भस्म किया - ऐसा आता है या नहीं ? तीसरी आँख से ऐसा (चलाया) । काम तो यहाँ है, वहाँ बाहर में कहाँ काम था ? समझ में आया ?
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'बुद्ध' यह बुद्ध भी भगवान सच्चा बुद्ध। यह सर्व तत्त्वों का यथार्थ ज्ञाता बुद्ध है कोई बौद्धों को मान्य बुद्ध देव यथार्थ सर्वज्ञ परमात्मा नहीं हैं । बुद्ध है, वह सर्वज्ञ है ही नहीं। वह तो साधारण प्राणी था । मिथ्यात्व था, अज्ञान था, एकान्त मिथ्यादृष्टि था। वह लोगों को रुचता नहीं कितने ही कहते हैं, अर... र... र... ! बुद्ध भगवान हैं न ! भाई ! परन्तु भगवान किसके ? सुन न ! समझ में आया ?
परमात्मा एक समय में पूर्णानन्द का नाथ आत्मा, वह बुद्धं अर्थात् ज्ञानस्वरूप पूर्ण परिणमता है - ऐसी-ऐसी अनन्त शक्तियाँ आत्मा रखता है; इसलिए इस आत्मा को बुद्ध