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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) वह शिव शंकर विष्णु अरु रुद्र वही है बुद्ध । ब्रह्मा ईश्वर जिन यही, सिद्ध अनन्त अरु शुद्ध ॥ ३८९ अन्वयार्थ - ( सो सिउ संकरू विण्हु सो ) वही शिव है, शंकर है, वही विष्णु है ( सो रुद्द वि सो बुद्धु ) वही रुद्र है, वही बुद्ध है ( सो जिणु ईसरू बंभु सो ) वही जिन है, वही ईश्वर है, वही ब्रह्मा है ( सो अणंतु सो सिद्ध) वही अनन्त है, वही सिद्ध है । ✰✰✰ आत्मा ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश है । अन्यमती कहते हैं, वे नहीं, हाँ! अर्थ अलग। यह तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश... ऐसा आत्मा उसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहते हैं । यह लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहते हैं, वह आत्मा ऐसा नहीं । समझ में आया ? आहा... हा... ! बहुत अन्तर है, वस्तु में तो पूरा ( अन्तर है ) । कल देखा था, नहीं? समयसार में प्रस्तावना में मनोहरलालजी वर्णी ने बहुत लिखा कि सबमें विरोध नहीं है। परमात्मा मानते हों, अमुक मानते हों, हैं न? उनकी प्रस्तावना है । सब विवेकी है, प्रज्ञापूर्ण है और एक-दूसरे से कोई विरुद्ध नहीं है, उसमें कोई असत्य नहीं है । यहाँ तो कहते हैं कि भगवान ने देखा आत्मा ऐसा कभी तीन काल में दूसरी जगह नहीं है। आत्मा की बातें भले कोई भी करे । समझ में आया ? कहाँ गयी पुस्तक ? उसमें आया है। सबका ध्येय समयसार है, उसका अर्थ क्या ? समयसार अर्थात् आत्मा है ही कहाँ ऐसा ? शशीभाई ! कैसे होगा ? यह वैष्णव थे, लो न ! आत्मा एक, उसमें आकाश के प्रदेशों की संख्या से अनन्त - अनन्त गुण, उनकी अनन्त पर्यायें, उनके असंख्य प्रदेश... कहाँ है? लाओ, किसी जगह ऐसा आत्मा हो तो । वीतराग सर्वज्ञ परमेश्वर के सिवाय.... भले आत्मा ध्येय... ध्येय करे, बातें करे परन्तु आत्मा कैसा है ? - यह जाने बिना ध्येय कहाँ से आया उसे ? समझ में आया ? लिखा है देखो ? ‘कुछ विवेकी महानुभावों की धारणा है कि जिस परमब्रह्म परमेश्वर ने अपनी सृष्टि की है, उस परम पिता परमात्मा की ही उपासना से दुःखो की मुक्ति हो सकती है। कुछ विवेकी महानुभाव की धारणा है...' यहाँ ब्रह्मा विष्णु नाम पड़े
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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