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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ३८३ आता कि मैं ऐसा भगवान ? बीड़ी के बिना चले नहीं, उसके बिना चले नहीं, धूल के बिना चले नहीं, कीर्ति के बिना चले नहीं, उसे ऐसा मैं ? यह किसी प्रकार अन्दर जमता नहीं है । प्रेमचन्दभाई ! आहा... हा...! भाई ! तू स्वयं ही अरहन्त स्वरूप शक्तिरूप विराजमान है। उसका ध्यान कर ! तू सिद्धस्वरूप अन्दर विराजमान है। 'सिद्ध समान सदा पद मेरो' । वस्तुपने है । कहीं पर्याय में सिद्ध समान है ? पर्याय में सिद्ध समान हो तो फिर पुरुषार्थ करना क्या रहा? अन्तरस्वरूप ही अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य, अनन्त आनन्द ऐसे ही अनन्त स्वच्छता, अनन्त परमेश्वरता, कर्ता-कर्म षट्कारक की शक्तियाँ भी एक समय में अनन्त-अनन्तरूप विराजमान आत्मद्रव्य में है - ऐसा आत्म- दरबार जिसमें अनन्त गुण शाश्वत् हो, शक्तिरूप सामर्थ्यरूप (विराजमान है) । अनन्त पर्यायें एक गुण की हो वे तो भले परन्तु उसके अतिरिक्त इसकी अनन्त शक्ति एक-एक गुण की है। समझ में आया ? अस्तित्व रखता है, प्रमेयत्व रखता है, ध्रुवता रखता है, नित्यता अन्दर इसे प्रत्येक गुण को निमित्त होने की ताकत रखता है, अपनी अस्ति है, अनन्त गुण की उसमें नास्ति है, एक-एक गुण अस्ति है और अनन्त गुण की (नास्ति है)। ऐसी एक - एक गुण अनन्त पर्याय होने पर भी उसकी शक्ति उसके अतिरिक्त वापिस अनन्त है । आहा... हा...! समझ में आया। भाई ! यह वस्तु ऐसी है । यह कोई कल्पना से बड़ी कर दी है - ऐसा नहीं । वस्तु ही ऐसी है । वस्तु ही ऐसी है । भगवान आत्मा... ! कहते हैं कि भाई ! सिद्ध का ध्यान अर्थात् तेरे स्वरूप का ध्यान कर । त्रिकाली भगवान आत्मा सिद्धस्वरूपी है, भाई ! उसकी एकाग्रता कर। उस एकाग्रता का अर्थ श्रद्धा-ज्ञान और चारित्र, ये तीनों स्वभाव की एकाग्रता के तीनरूप हैं। समझ में आया ? आहा... हा...! आचार्य का ध्यान। आचार्य जो कुछ शिक्षा-दीक्षा देने में जो विकल्प है - राग, वह प्रमादभाव है, वह नहीं रखना । वह आचार्यपना नहीं; आचार्यपना तो अन्दर में ज्ञान दर्शन, आनन्दादि पाँच आचारों का निर्मल परिणमन परिणमित होना, वह आचार्यपना है। शिक्षादीक्षा आदि देने का विकल्प होता है - रंजन - राग, वह आचार्यपना नहीं है । वह तो राग
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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