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सामायिक चारित्र कथन सव्वे जीवा णाणमया जो सम-भाव मुणेइ। सो सामाइउ जाणि फुडु जिणवर एम भणेइ॥ ९९॥
सर्व जीव हैं ज्ञानमय, ऐसा जो समभाव।
सो सामायिक जानिये, भाषे जिनवर राव॥ अन्वयार्थ - (सव्वे जीवाणाणमया) सर्व ही जीव ज्ञानस्वरूपी हैं - ऐसा (जो समभाव मुणेइ) जो कोई समभाव को मनन करता है ( सो फुडु सामाइउ जाणि) उसी के प्रगटपने सामायिक जानो (एम जिणवर भणेइ) ऐसा श्री जिनेन्द्र कहते हैं।
वीर संवत २४९२, श्रावण शुक्ल ५,
गाथा ९९ से १००
शनिवार, दिनाङ्क २३-०७-१९६६ प्रवचन नं.४२
यह योगसार शास्त्र है, इसमें ९९ वीं गाथा। चारित्र अर्थात् समभाव किसे कहना? और समभाव किसे होता है ? और समभाव कैसे होता है ? समझ में आया? किसे होता है? कैसे होता है ? यह कहते हैं । देखो!
सव्वे जीवा णाणमया जो सम-भाव मुणेइ।
सो सामाइउ जाणि फुडु जिणवर एम भणेइ॥९९॥
सव्वे जीवा णाणमया.... देखो ! समभाव उसे होता है कि जो सब जीवों को ज्ञान में देखता है। सर्व जीव है ज्ञानमय' – यह इसका अर्थ है। श्रीमद् में ऐसा आता है, 'सर्व जीव है सिद्ध समान'। यह योगीन्दुदेव आचार्य (कहते हैं), सर्व जीव है ज्ञानमय। ऐसे स्वयं को भी ज्ञान में देखने से समभाव प्रगट होता है। स्वयं ज्ञानमय है, ज्ञानमय अर्थात्