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गाथा-९६
गया? कहाँ गया लड़का ? ढूँढ़ने जाए... परन्तु यह रहा यहाँ, देख तो सही ! ऐसा का ऐसा रहा करे, हाथ ऐसा-ऐसा हो गया इसलिए हाथ में लटक-लटक ऐसा नहीं रहा। ऐसा का ऐसा हाथ पकड़ गया और वह लड़का अन्दर में रह गया। ए... लड़का कहाँ गया? लड़का कहाँ गया? यहाँ तो देखता नहीं, यह रहा अन्दर। दृष्टान्त आता है या नहीं? तुम्हारे (हिन्दी में) आता है या नहीं? 'बगल में लड़का गाँव ढूँढ़े।' हमारे काठियावाड़ में ऐसा (कहते हैं) 'काँख में छोकरू ने गोते बाहर मां।' दृष्टान्त तो एक ही होते हैं न! भाषा में अन्तर होता है।
कहते हैं, भाई! तू स्वयं परमात्मा है न! अन्दर में सम्पूर्ण शुद्ध है। तू ढूँढ़ने कहाँ जाता है? कहीं सम्मेदशिखर में है भगवान? शत्रुञ्जय में है ? मन्दिर में है ? मूर्ति में है ? कहाँ है तेरा भगवान? आहा...हा...! मेरो धनी है... आता है न अपने? (समयसार नाटक) दूर देशान्तर'... क्या (है)? 'मोही में है मोको'... कितना पृष्ठ है ? बन्ध अधिकार, परन्तु पृष्ठ कितने? पृष्ठ का पता नहीं होता। आया... आया।
केई उदास रहैं प्रभुकारन, केई कहैं उठि जांहि कहींकै।
केई प्रनाम करैं गढ़ि मूरति, केई पहार चर्दै चढ़ि छींकै॥ यह तो शुभभाव है, इतना। बाकी वहाँ भगवान नहीं, तेरा भगवान को यहाँ है।
केई कहैं असमानके ऊपरि, केई कहैं प्रभु हेठे जमींकै।
मेरो धनी नहि दूर दिसन्तर, मोहीमें है मोहि सूझत नीके ॥४८॥ मेरो धनी नहि दूर दिसन्तर, मेरो धनी नहि दूर दिसन्तर, मोहीमें है मोहि सूझत नीके। देखो, यह बनारसीदास ने क्या कहा यह, 'मोहि सूझत नीके'। अरे भगवान ! तेरा तुझे पता नहीं पड़ता, यह तो कोई बात है? अरे! यह तू क्या अन्धा है ? कहाँ न हमें तो इसमें प्रत्यक्ष होने का ही गुण है। अनादि-अनन्त गुण है।
मुमुक्षु – यह काल इसे रोकता है।
उत्तर – काल कब इसे रोकता था? काल, काल के घर रहा। यह भी इसमें बहुत जगह कहा है ? दिवस और पहर वह घड़ी मेरी-मेरी ऐसा कहा है, एक जगह, हाँ! दिवस घड़ी उसके घर रही। वह कहाँ है? यह भाई बहुत गाते... दामोदर लाखानी, यह मेरा पहर