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योगसार प्रवचन (भाग-२)
केवलज्ञान हो जाता है - ऐसा कहते हैं। जिनवाणी के अभ्यास का सम्यक् प्रकार से उद्यम करके अपने आत्मा को यथार्थ जानने का हेतु रखना। हेतु तो यह है 'लाख बात की बात निश्चय उर लाओ...' भगवान आत्मा की परमेश्वरता.... परम ईश्वरता... परम ईश्वरता... की दृष्टि उसका ज्ञान और उसकी रमणता में आवे, वह उसका सार है। समझ में आया? अब यह मार्ग अभी नहीं ऐसा कहते हैं । अरे... प्रभु ! भाई ! यदि ऐसा पंचम काल
हो तो अभी धर्म ही नहीं है तो धर्म नहीं ऐसा नहीं होता, भाई ! धर्म नहीं ऐसा नहीं और धर्म हो तो वह इस प्रकार धर्मी के आश्रय से होता है, स्व के आश्रय से हो वह धर्म कहा जाता है । आहा... हा...!
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तीन लोक के नाथ सर्वज्ञ परमेश्वर सीमन्धर प्रभु विराजमान हैं, उनके ज्ञान से कौन सी बात गुप्त है ? तीन-तीन ज्ञान के धनी शकेन्द्र आदि भगवान को वन्दन करने जाते हैं, उनके ज्ञान में भी कुछ कमी नहीं है । शास्त्र में आता है न कि अमुक दक्षिण के देव होते हैं, अमुक उत्तर के देव होते हैं, यह मुख्य-मुख्य बड़ी बातें हों, वे इन्द्रों को पहुँचाते हैं – ऐसा पाठ है। भाई ! पण्डितजी ! क्या कहलाता है ? लोकपाल, लोकपाल है न ? शास्त्र में लेख है । इस भरतक्षेत्र आदि में बड़ी-बड़ी बातें हों, वे लोकपाल इन्द्र को पहुँचाते हैं कि ऐसा है, ऐसा है । लोकपाल की बात आती है। चार लोकपाल हैं न ? यहाँ सरकार को पहुँचाते हैं या नहीं ? दूसरे के यहाँ तुम्हारी युद्ध होने की बात चलती है, हाँ ! अमुक... अमुक... षड़यन्त्र ऐसा कुछ कहते हैं न? यह सब उनके गुप्तचर हों, वे पहुँचाते हैं। जासूस कहलाते हैं । इस प्रकार यह चार जासूस हैं। चार दिशा के लोकपाल । वे इन्द्र को बड़ी-बड़ी बात (पहुँचाते हैं)। बड़ी फेरफारवाली बात भी उन्हें कान में तो पड़ गयी है। समझ में आया ? इन्द्र के अवधिज्ञान में वह बात आयी हुई है, भगवान ज्ञान में आयी हुई है।
भाई ! आत्मा अपने स्वभाव को पहुँचे, प्राप्त करे, रुचि करे, उसे जाने, उसका वेदन करे, तब उसे मोक्ष का मार्ग हुआ कहा जाता है, उसे सामायिक और प्रौषध कहा जाता है। कामदार ! आहा...हा.... ! भाई ! ऐसी तेरे घर की मीठी बात तुझे क्यों नहीं रुचती ? भूख लगी हो और इसे ऐसा पोले से पोला मक्खन और पोले से पोला बड़ा अथवा खाजा दे और भूख