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गाथा-९४
अब कम हो गयी है। आठ-आठ दिन। शनिवार से शुरु हो तो निश्चित होता कि (आगामी) शनिवार तक रहेगी। यहाँ तो तीन बार शनिवार से शुरु हो तो रविवार को कुछ नहीं मिले। उस समय तीन बार शनिवार से शुरु हुई। पहले ऐसा था, हाँ! पचास-साठ वर्ष पहले। यदि शनिवार से वर्षा शुरु हो तो शनिवार की आठ दिन की झड़ी हो । झड़ी अर्थात् आठ दिन तक बरसे - ऐसी पहले कहावत थी। मलूकचन्दभाई! पता है। एक बार, तीन बार शनिवार को आयी तो रविवार को कुछ नहीं मिला। शनिवार को शुरु हो तो लोग बातें करें। काल बदल गया। ए...ई...!
यहाँ कहते हैं कि हे जीव! इस अपने आत्मा को पुरुषाकार प्रमाण.... यह महा-सिद्धान्त है। पहले ९३वें गाथा तक इतनी महिमा की, तब (किसी को लगे कि) इतना महान अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द, अनन्त-अनन्त गुण, तो यह बड़ा तो कितना (बड़ा) क्षेत्र से होगा? बापू! क्षेत्र से बड़ा (होवे उसकी) महिमा नहीं है; क्षेत्र से तो शरीर प्रमाण ही है। उसके गणों के भाव के स्वभाव की अचिन्तता के भाव की महिमा है। समझ में आया? यह वेदान्त आदि कहते हैं न? सर्वव्यापक।क्या धूल सर्वव्यापक है? सुन तो सही! ध्यान करना हो तो इसे ऐसा करना पड़ता है ? तो इसका अर्थ कि जितने क्षेत्र में है, उतने में एकाग्र करता है; इसलिए पुरुषाकार प्रमाण आत्मा है – ऐसा सिद्ध करते हैं। समझ में आया?
इस अपने आत्मा को पुरुषाकार प्रमाण, पवित्र.... भाव से पवित्र गुणों की खान.... है न? गुणगणणिलउ णिलउ गुण के समूह का निलय। निलय अर्थात् घर अकेले अनन्त आनन्दादि गुणों का घर आत्मा है, वह तेरे राग में भी नहीं और तेरे पैसे में - धूल में कहीं नहीं, समझ में आया? गुणगणणिलउ और णिम्मलतेय फुरंतुं निर्मल तेज से प्रकाशमान देखना चाहिए।
ऐसा भगवान आत्मा शरीर-प्रमाण अन्तर निर्मल गुण का नाथ, तेज से स्फुरित - ऐसे आत्मा को अन्तर ज्ञान और श्रद्धा से देखना चाहिए।
आत्मा की भावना करने के लिए शिक्षा दी है कि आत्मा को ऐसा विचारना चाहिए कि उसका आत्मा अपने पुरुष के आकार-प्रमाण है, सर्व शरीर में