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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) २८३ उपदेश देना, जो रतनचन्दजी कहते हैं, यह सच्ची धारणा.... निश्चय के बहुत बोल डाले हैं, हाँ! सब चला अवश्य, अन्दर गड़बड़, गड़बड़। शास्त्र में तो ऐसा कहते हैं कि महाराज! मुझे जन्म-मरण मिटे वह उपदेश दो, मुझे दूसरा कुछ नहीं चाहिए। क्यों लेट होना? क्या हुआ? मुमुक्षु – संसारिक है? उत्तर – संसारिक है। भटकने का है। दु:खी होने का है। कहो, इसमें कुछ समझ में आया? आहा...हा...! कहते हैं यह आत्मा.... आत्मा वस्तु अखण्डानन्द प्रभु के सन्मुख में जो दृष्टि, ज्ञान और रमणता हुई, उतना भगवान ने धर्म कहा है। उसे निर्जरा अधिक हो जाती है, आस्रव थोड़ा रहता है। पूर्ण वीतराग न हो, तब तक थोड़ा आस्रव रहता है। अज्ञानी को तो अकेला आस्रव ही है क्योंकि मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय इनमें से एक भी नहीं मिटा है। वह पूरा आस्रव है। भगवान अरहन्त तो कोई आस्रव नहीं है, ईर्यापथ आस्रव एक समय का, वह कोई आस्रव नहीं है। वे पूर्ण अनास्रवी, पूर्ण अनन्त ज्ञानादि को प्राप्त हुए हैं। अब धर्मी जो साधक है, उसे आत्मा के सन्मुख की दृष्टि हुई है, इसलिए आत्मा के आनन्द के अंश का अनुभव है, उसे ज्ञानचेतना अन्दर में प्रगट हुई है, इसलिए संवर और निर्जरा विशेष है, उसे थोड़ा-सा आस्रव है। कहो, समझ में आया? आहा...हा...! इसलिए आत्मध्यान ही मोक्षमार्ग है। राग और पुण्य का ध्यान, वह कहीं मोक्षमार्ग नहीं है; बीच में आस्रव हो, पुण्य-पाप परिणाम (हों) परन्तु वह कोई मोक्षमार्ग नहीं है। मोक्षमार्ग तो मोक्षस्वरूप जो भगवान आत्मा. विकार और कर्म तथा शरीर से रहित स्वरूप - ऐसा मोक्षतत्त्वस्वरूप, निश्चयमोक्षस्वरूप-शक्ति, उसकी दृष्टि करने से मोक्ष का मार्ग प्रगट होता है और पुण्य-पाप तथा राग-द्वेष तो बन्ध का लक्षण है, वे तो बन्धस्वरूप है; इसलिए बन्ध के लक्ष्य से, बन्ध के स्वरूप से - आश्रय से कभी छूटने का मार्ग प्रगट नहीं होता। समझ में आया? आहा...हा...! सीधी सरल (बात है) परन्तु इसने कभी अनन्त काल में यह प्रभु के पास रहा, यह पास रहा परन्तु इसने सन्मुख नहीं देखा। आहा...हा... ! ऐसे (बाहर) ही देखा किया है और उसमें से कुछ लाभ होगा, बहिर्मुखदृष्टि
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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