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________________ गाथा - ९० ही खड़ा होता है; एक ही प्रकार खड़ा होता है। चारों ओर से देखो, हाँ ! वस्तु सत्य है तो उसमें दूसरा क्या निकले। समझ में आया ? समझ में आता है या नहीं ? सुभाषचन्द्रजी ! आहा... हा...! २३४ 'प्रभु तुम जाणग रीति... ' परन्तु यह तो वे जानते हैं, वही कहते हैं न? कि भगवान ने जाना। भगवान ने जाना उसमें तुझे क्या ? भगवान तो तीन काल-तीन लोक को सामान्य और विशेष एक-एक समय में अनन्त अविभाग प्रतिच्छेद भिन्न-भिन्न भगवान जानते हैं, दिव्यज्ञान किसे कहते हैं ? ओ...हो...हो... ! जिसकी ज्ञान पर्याय अकेली निरावरण, निर्मलानन्द हो गयी.... लोकालोक क्या ? उससे अनन्त गुना हो तो जानने की ताकत है। स्वभाव की मर्यादा क्या ? ज्ञान की एक समय की पर्याय स्वभाव है । स्वभाव में माप नहीं, स्वभाव में हद नहीं । अमाप... अमाप... अमाप... इससे अनन्तगुना लोकालोक हो तो एक समय में जानने की सहज सामर्थ्य है। समझ में आया ? परमात्मप्रकाश में दृष्टान्त आया था न ? बेलड़ी का दृष्टान्त आया है। बेल कहते हैं ? लता । जहाँ तक बाँस है, वहाँ तक बेल चलती है, फिर नहीं चलती तो उसकी ताकत नहीं है – ऐसा नहीं है, बाँस है, वहाँ तक चली फिर ऐसी की ऐसी ऊपर चढ़ती है। इसी प्रकार भगवान ज्ञान में लोकालोक का मण्डप इतना दिखता है, इसलिए शक्ति इतनी है ऐसा नहीं है। भगवान ! उस स्वभाव की मर्यादा नहीं है । आहा... हा... ! स्वभाव किसे कहते हैं ? परमाणुओं का स्वभाव किसे कहते हैं ? ओहो...हो... ! एक समय में परमाणु एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में गति करता है, दूसरे समय में चौदह ब्रह्माण्ड गति करता है कारण क्या ? कारण क्या ? द्रव्य-गुण कारण है ? वे तो त्रिकाल पड़े हैं । काल कारण है ? काल करणा लिखा है, पंचास्तिकाय में लिखा है - काल करणा... पुद्गल और जीव को पुद्गल करना... यह हो। लाओ सिद्धान्त ! एक रजकण परमाणु पॉइन्ट एक समय में इतना जाता है। दूसरे समय चौदह ब्रह्माण्ड चला जाए कारण कौन ? कारण क्या, वह पर्याय का स्वतः स्वभाव है । द्रव्य-गुण के कारण नहीं । द्रव्य-गुण तो त्रिकाल पड़े हैं। पहले भी एक समय चला तब द्रव्य-गुण पड़े हैं, काल तो निमित्त है। काल करा देता है उसे ? क्या है ? भगवान ! स्वभाव की चीज ही ऐसी है । - -
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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