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गाथा - ९०
व चारित्र सम्यक्चारित्र हो जाता है । जैसे, १ के अंकसहित बिन्दी सफल होती है..... एक अंक हो एक तो बिन्दी सफल है। नौ को बढ़ा देती है, तो उस अंक की प्रधानता है, बिन्दी की प्रधानता नहीं । असंख्यात अनन्त बिन्दियाँ हों तो ( परन्तु ) एक के बिना संख्या किस प्रकार करना ? बिन्दी ( अंक के) बिना सफल नहीं तो निष्फल है। नहीं तो निष्फल होती है, वैसे सम्यक्तसहित ज्ञान व चारित्र मोक्ष की तरफ ले जानेवाले हैं। क्योंकि अपने द्रव्यस्वभाव की दृष्टि स्वसन्मुख, स्व आश्रय से हुई, वही दर्शन स्वसन्मुख में ले जाने का कारण है, वही दृष्टि स्वसन्मुख में ले जाने का कारण है, क्योंकि स्वसन्मुख में ले जाने पर, ले जाने से केवलज्ञान हो जाएगा, समझ में आया ? सम्यग्दर्शन में व्यवहार से, विकल्प से भी वह तो मुक्त है । व्यवहार है अवश्य, होता है परन्तु सम्यग्दर्शन का ध्येय स्वरूप में है, दृष्टि द्रव्य पर है, पर्याय का परिणमन द्रव्य पर हो गया है, वह राग से तो मुक्त है।
वह सम्यग्दृष्टि क्रम-क्रम से मोक्ष की ओर ले जानेवाली है अर्थात् अबन्ध परिणाम की उग्रता तरफ ले जानेवाला सम्यग्दर्शन है । बन्ध परिणाम की तरफ से छूटता है, अबन्ध परिणाम की तरफ ले जानेवाला है । आहा... हा... ! क्योंकि अबन्ध स्वभावी द्रव्य, अबन्ध स्वभावी ऐसा दृष्टि में आया तो अबन्ध स्वभावी परिणाम भी उसके सन्मुख चला जाता है। अबन्ध स्वभावी परिणाम कहो या मोक्ष का मार्ग कहो। मोक्षमार्ग कहो या अबन्ध परिणाम कहो ( एकार्थ है ) । जब सम्यग्दर्शन, अबन्ध स्वभावी द्रव्य के आश्रय से उत्पन्न हुआ तो वह क्रम-क्रम से अबन्ध परिणाम की तरफ ही झुकता है, केवलज्ञान तक ले जाता है। समझ में आया ?
यदि सम्यक्त्व न हो तो केवल पुण्य बाँधकर संसार के भ्रमण के ही कारण है। स्व का आश्रय नहीं हुआ और पर के आश्रय से दया, दान, व्रत, पूजा, भक्ति करता है तो पुण्य है, संसार का कारण है । बन्ध का कारण कहो या पर का आश्रय भटकने का कारण है।
जैसे मूल के बिना वृक्ष नहीं है ... मूल के बिना वृक्ष होता है ? नींव के बिना घर नहीं है, वैसे ही सम्यक्त्व के बीज बिना धर्मरूपी वृक्ष नहीं होता... कहो समझ में