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योगसार प्रवचन (भाग-२)
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(५) उपशम - आत्मानुभव के प्रताप से उसमें सहज शान्तभाव जागृत रहता है। उपशम की व्याख्या की है। अकषायपरिणति सदा जागृत रहती है, सदा अकषायभाव साक्षी की जागृति है।
(६) भक्ति – सम्यग्दृष्टि जीव को जिनेन्द्रदेव, निर्ग्रन्थगुरु और जिनवाणी की गाढ़ भक्ति होती है।शुभभाव है न? शुभभाव। स्तुति, वन्दना, पूजा और स्वाध्याय करता रहता है, उन्हें मोक्ष का सहकारी जानता है। मोक्ष में ये निमित्तरूप भाव हैं । यह शुभभाव निमित्तरूप सहकारी है, मेरा स्वभाव, साधन है।
(७) वात्सल्य – साधर्मी भाई और बहिनों के प्रति... प्रेम है। धार्मिक प्रेम रखता है... धार्मिक के साथ की बात है न! उसमें क्या है ? है ? साधर्मी की विशेष दशा देखकर उसे द्वेष नहीं आता। (उसे ऐसा लगता है कि) ओ...हो...! मुझे भी उग्रता में जाना है, उन्हें उग्रता हो गयी। धन्य अवतार, भाई ! ऐसा नहीं है कि हमारा शिष्य क्यों बढ़ गया? उसे तो चार ज्ञान हो गये और अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान की तैयारी हो गयी। बहुत अच्छा, अलौकिक बात है ! हमें जो चाहिए, वह उसे प्राप्त होता है, बहुत अच्छा (-ऐसा) प्रेम रखता है। साधर्मी के प्रति उसे (प्रेम आता है)। (अपने से) अधिक देखकर द्वेष नहीं आता। लोगों में तो अपने से अधिक पैसा देखे तो द्वेष आता है। अपने पास पाँच लाख, और इसके पास दस लाख (हो गये)। मूलकचन्दभाई! उनके पुत्र के पास एक करोड़, दो करोड़ हैं न! तो भी दूसरे के प्रति द्वेष आता है कि हमारे पास दो करोड़ और उनके पास पाँच करोड़! – ऐसा द्वेष आता है। यहाँ तो साधर्मी की विशेष गुण की दशा देखकर प्रेम आता है। ओ...हो...! धन्य अवतार!! समझ में आया? ऐसा प्रेम है। उसमें नहीं आया?'न धर्मो धार्मिर्के बिना' रत्नकरण्डश्रावकाचार.... धर्म कहीं धर्मी के बिना नहीं होता, धर्मी जीव के बिना धर्म नहीं होता तो जिसे धर्मी के प्रति प्रेम नहीं है, उसे धर्म के प्रति प्रेम नहीं है । रत्नकरण्डश्रावकाचार... आचार्यों ने तो वस्तु के स्वरूप का महाकथन ऐसी पद्धति से किया है। वात्सल्य है।
(८) अनुकम्पा – प्राणीमात्र के प्रति दया है। किसी के साथ अन्याय का व्यवहार नहीं करता। ऐसा लिया है। फिर लिया है (कि) सम्यग्दृष्टि को ४१ प्रकृतियों