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योगसार प्रवचन (भाग-२)
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की मूर्ति है, उसका ध्यान करो। वह ध्यान ही मोक्ष का मार्ग है। समझ में आया? 'दुविहं पि मोक्खहेउं झाणे पाउणदि' यह आता है न? पण्डितजी! द्रव्यसंग्रह... द्रव्यसंग्रह ४७ गाथा। 'दुविहं पि मोक्खहेउं झाणे पाउणदि जं मुणी णियमा।' अन्तर । अन्तरध्यानस्वरूप.... देखो! 'दविहं पिमोक्खहेउं' निश्चय और व्यवहार दोनों'झाणे पाउणदि जं मुणी णियमा' द्रव्यसंग्रह । भगवान आत्मा अपने पूर्ण आनन्दस्वरूप की दृष्टि ध्यान में और अन्दर ज्ञानरूपी ध्यान में और लीनता भी अन्दर ध्यान में उत्पन्न होती है। साथ ही विकल्प बाकी रहता है, उसे व्यवहार कहा जाता है। (मोक्षमार्ग) ध्यान में उत्पन्न होता है, बाहर से विकल्प से निश्चय उत्पन्न नहीं होता। अन्दर भगवान आत्मा... मोक्षमार्ग की उत्पत्ति ध्यान में से उत्पन्न होती है। समझ में आया? ओहो...हो...! आचार्यों ने तो चारों ओर..., कोई भी शास्त्र लो, ऐसी ही बात की है। स्पष्ट वीतरागमार्ग मोक्षमार्ग है – ऐसा ढिढोरा पीटा है, ढिंढोरा पीटा है। भाई! रागमार्ग, यह मार्ग आत्मा का नहीं, प्रभु! आत्मा वीतरागस्वरूप है न ! उसकी श्रद्धा, ज्ञान और निर्विकल्प अनुभव करो, वही मोक्ष का मार्ग है। यह छियासी (गाथा पूरी) हुई। अब, ८७।
सहज स्वरूप में रमण कर जइ बद्धउ मुक्कउ मुणहि तो बंधियहि णिभंतु। सहज-सरूवइ जइ रमहि तो पावहि सिव सन्तु॥८७॥
बन्ध-मोक्ष के पक्ष से, निश्चय तू बन्ध जाय।
रमे सहज निज रूप में, तो शिव सुख को पाय॥ अन्वयार्थ – (जइ बद्धउ मुक्कउ मुणहि) यदि तू बन्ध मोक्ष की कल्पना करेगा (तो णिभंतु बंधियहि ) तो निःसन्देह तू बँधेगा (जइ सहज-स्वरूप रमहि) यदि तू सहज स्वरूप में रमण करेगा (तो सन्तु सिव पावहि) तो शान्तस्वरूप मोक्ष को पावेगा।
सहजस्वरूप में रमणता कर! बन्धमोक्ष का विकल्प छोड़ दे। आहा...हा...!