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परिणामे बंधुजि कहिउ मोक्ख वि तह जि वियाणि ।
इउ जाणेविणु जीव तुहुँ तह भावहु परियाणि ॥ १४ ॥
कहि भगवान ने कहा- फिर ऐसा सिद्ध करते हैं । भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव ने परिणामों से ही कर्म का बंध कहा गया है। क्या कहते हैं ? तेरे परिणाम जो हैं, उन परिणामों से ही बन्धन होता है । कहो, समझ में आया ? कोई जीव की हिंसा या दया (करे), उससे बन्धन नहीं होता – ऐसा कहते हैं ।
गाथा - १४
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मुमुक्षु - दूसरे शास्त्र में ऐसा लिखा है।
उत्तर - दूसरे शास्त्र में तो निमित्त की बात की होती है । क्या करे ? मुमुक्षु - दोनों कथन मानना पड़े न ?
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उत्तर एक ही कथन यथार्थ है, उसे दूसरा कथन उपचार, वह जानने योग्य है । यह क्या कहा ? परिणाम से बंध भगवान ने कहा है
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मुमुक्षु - एकान्त हो जाता है ?
उत्तर – एकान्त परिणाम से बंध (होता है), यह सम्यक् एकान्त ही है । कहो, यह तो आया है न ? इसमें लिया है, उसमें अपने नहीं.... ? उसमें भी कहीं डाला है । समयसार में आता है न ? अज्झवसिदेण बंधो सत्ते मारेउ मा व मारेउ। एसो बंधसमासो जीवाणं णिच्छयणयस्स॥ २६२ ॥ भगवान स्वयं समयसार में ऐसा कहते हैं कि किसी वस्तु के आश्रय से बन्ध नहीं होता। पर जीव मरे, उस वस्तु का आश्रय वह । जीव मरे, बचे, लक्ष्मी उसके आश्रय बंध नहीं होता। शरीर की क्रिया, शरीर की क्रिया, जीव का बाहर का मारना या जीना या लक्ष्मी का आना या लक्ष्मी का जाना, उस किसी परवस्तु के आश्रित बंध नहीं होता । समझ में आया ?
मुमुक्षु - पर के कारण बंध नहीं होता ।
उत्तर - बंध होता ही नहीं ।
मुमुक्षु - एकान्त हो जाता है।
उत्तर - एकान्त ही है । परिणामे बंधो • यह क्या कहते हैं ? जैसे तेरे परिणाम