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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
मुमुक्षु - जानने के लिये तप करना न ।
उत्तर -
• तप क्या करे ? धूल... जानने के लिये तप करते होंगे ? कहो, तुम्हारा नाम जानना हो तो कितने उपवास करने से नाम जानने में आयेगा ? साथ में मनुष्य खड़ा हो, मुझे पूछना नहीं, जानना नहीं, कहो कितने तप से ज्ञात होगा ?
मुमुक्षु - दूसरे को विचार होता है कि यह कुछ माँगता है ।
उत्तर – पूछना पड़े न इसे ? पूछना पड़े न, तुम कौन हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? हैं ? धूप में खड़े रहो तो ?
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मुमुक्षु - परन्तु लौकिक तप और यह लोकोत्तर अलग बात है न ?
उत्तर - लौकिक में दूसरा हो और लोकोत्तर में दूसरा हो - ऐसा होगा ? यह तो दृष्टान्त है। किसी भी व्यक्ति का नाम जानना हो, उसकी पहचान करना हो तो इस जेब में से पाँच लाख रुपये दे देवे तो नाम ज्ञात हो जायेगा ? कहो, रतनलालजी ! जेब में से दूसरे को दे दे तो ? इस दान से नहीं होता। दो-चार दिन मौन रह जाये, नाम ज्ञात हो जायेगा ? दो-चार दिन खाये नहीं, उसमें नाम ज्ञात हो जायेगा ? समझ में आया ? नाम जानने का तो जो अज्ञान है, उसे ज्ञान द्वारा ही अज्ञान नष्ट होता है। तुम्हारा नाम क्या है ? अभी पूछे न, आपका शुभ नाम क्या है ? ऐसा क्या कुछ कहते हैं न? हैं ? आपका शुभ नाम । ऐसी सब भाषा है न ? क्या कहते हैं ? ऐसा कुछ कहते हैं न? आपका शुभ नाम क्या है ? ऐसा पूछते हैं । तब कहता है, हमारा नाम अमुक है।
यहाँ कहते हैं, हे आत्मा ! तू कौन है ? ऐसा यहाँ कहते हैं। तेरा नाम अर्थात् तू किसमें रहता है ? तू किसमें रहा हुआ है ? तुझे किस प्रकार पहचानना ? अप्पा अप्प मुणेहि ऐसा शब्द है । आत्मा अपने आत्मा का ज्ञान करे कि यह आत्मा .... यह आत्मा.... जाननेवाला -देखनेवाला आनन्द शुद्धता वीतरागता – ऐसा जो आत्मा का स्वरूप, वह आत्मा । ऐसे ज्ञान और श्रद्धा - विश्वास करके, राग से हटकर स्वरूप में स्थिर हो, उसे यहाँ तप और धर्म कहा जाता है । आहा...हा...!
मुमुक्षु - कोई उपवास नहीं करे......
उत्तर
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कौन उपवास करता था ? अपवास करता है, अपवास
माठोवास ।