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गाथा - १२
स्वभाववाला समझेगा...... भगवान आत्मा वह स्वयं शुद्ध ज्ञान, दर्शन, आनन्दादि शुद्ध स्वभाववाला शुद्धस्वरूप आत्मा है - ऐसा जो समझेगा तो निर्वाण प्राप्त करेगा । तो उसमें एकाकार होकर, जिसने आत्मा जाना, उसमें दृष्टि लगाकर एकाकार होकर पूर्णानन्दरूपी निर्वाण अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करेगा । समझ में आया? बहुत संक्षिप्त ।
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अप्पा अप्पर जइ मुहि 'जइ मुणहि' ऐसा है न ? जो आत्मा, आत्मा को समझेगा.... यदि तू भगवान आत्मा को आत्मारूप से ज्ञानानन्द चैतन्यसूर्यरूप से अन्दर भगवान को देख, यदि तू जाने, समझे तो उस पृथक् तत्त्व को पृथक् जानने से अल्प काल में अत्यन्त मुक्त निर्वाण पद को प्राप्त करेगा। समझ में आया ? उसी उसी में घोलन करते हुए निर्वाण को प्राप्त करेगा - ऐसा कहते हैं। समझ में आया ? कि भाई ! आत्मा तो जाना, लो! तो निर्वाण पायेगा । बीच में फिर क्या करने का है ? कि यह आत्मा चैतन्य ज्योत ज्ञायकमूर्ति है - ऐसा जाना, यह उसी - उसी में जानना... जानना..... जानना... जानना... जानना... जानना... जानना... रह गया। वह स्थिर होने पर वीतरागता को पायेगा। उसमें बीच में व्यवहार आयेगा, उसकी बात ही नहीं की, भाई ! आहा... हा...! अस्ति से ही बात ली है न!
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भगवान आत्मा, विकल्प - पुण्य-पाप के विभावरहित चीज है ऐसी चीज को अप्पर आत्मा ने आत्मा को जाना । आहा... हा... ! बस ! उसमें यह जाना, यह मैं... यह मैं... यह मैं... ऐसी जो दृष्टि और स्थिरता (हुई), वह निर्वाण को पायेगा। इस आत्मा का साधन होकर, आत्मा का साधन आत्मा ही करके, आत्मा का साधन आत्मा द्वारा करके आत्मा निर्वाण अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करेगा । कहो, समझ में आया ? कुछ सूक्ष्म पड़े तो थोड़ा विचार करना, थोड़ा तो धीरे-धीरे कहते हैं, कहीं एकदम नहीं कहते। तुम प्रोफेसर तो सब एकदम (बोलते हो) । ए.... रतिभाई ! धीरे-धीरे तो कहते हैं, उसमें थोड़ा विचार करने का अवकाश (रहता है) । आहा... हा...!
ऐसा चैतन्य प्रभु, चैतन्य प्रकाश की मूर्ति... इस प्रकाश का प्रकाशक, राग का प्रकाशक, जड़ का प्रकाशक.... राग का आत्मा नहीं, जड़ का आत्मा नहीं, जड़ और रा का प्रकाशक और अपने स्वरूप का भी प्रकाशक । समझ में आया? ऐसा प्रकाशकस्वरूप