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________________ ७८ गाथा-११ पृथक् दशा है, जो पृथक् पदार्थ है, उस पृथक् का पृथक् काम करे; पृथक् का आत्मा कैसे उसका काम करे ? समझ में आया? इस शरीर का, कर्म का, देश का, परिवार का..... यह परवस्तु है या तू है ? तो पर है तो पर का काम तू कर सकता है ? पर का काम करे तो इसका अर्थ यह कि तू वहाँ एकमेक हो गया। करनेवाला कार्य में मिल गया, करनेवाला कार्य में मिल गया, अपने सत्व का नाश करके पररूप हो गया - ऐसा तूने माना है। ए.... धीरुभाई ! हैं ? यह संचा -वंचा बड़े कौन करता होगा वहाँ ? वह छोटेभाई कहते हैं, यह इन्हें पूछो, इसका कैसे करना है ? ऐसा। बुद्धिवाले को पूछते हैं या नहीं? ए... चिमनभाई! अद्भुत बात, भाई ! दूसरे कहें, तब पूछना किसलिए? एई...! मुमुक्षु – दो भाईयों के बीच विवाद होवे तो बड़ा भाई ऐसा ही कहता है कि मैंने किया है ? तू कहाँ था? उत्तर – तू कहाँ था अभी का? रखना है न! बड़ा हिस्सा लेना है न उसमें से। यहाँ बहुत ऐसे आये हैं, हाँ! हमारे पास । परन्तु कुछ किया नहीं, तू व्यर्थ का किसलिए लगा है ? कहा। बड़ा कमाता हो, पचास-पचपन हो गये हों, अब कहे कि छोटे भाई हों, समान भाग करो... परन्तु भाईसाहब! इन तीस वर्षों से मैं पिल रहा हूँ उसमें दो-चार लाख इकट्ठे हुए.... तू कहता है कि बराबर तीन भाग करो, परन्तु तीन करो तो अब मुझे क्या करना? वे कहे कि कहाँ हम अभी तक अलग हुए हैं ? तीनों साथ हैं, समान भाग करो... परन्तु भाई साहब! तुम तो अब कमाने को तैयार हुए हो और मेरी कमर झुक गयी है... तीन भाग दो, उसमें दूसरा कुछ चले ऐसा नहीं अब। ए.... सेठ! ऐसा होता है। ए... धीरुभाई! हमारे पास तो बहुत दृष्टान्त सहित है, हाँ! आहा...हा... ! अरे...! कुछ किया नहीं - ऐसा यहाँ कहते हैं। ए... मोहनभाई! तुम्हारे अकेला लड़का है। इसलिए क्या (होगा)? यहाँ तो कहते हैं कि तू तीनों काल अकेला ही है - ऐसा कहते हैं। 'अप्पाणु मुणेइ', 'अप्पाणु मुणेइ' आत्मा, वह क्या करे? आत्मा मुणेइ आत्मा क्या करे? राग को करे? पर को करे? पर इससे पृथक् है, वह पृथक्, पृथक् का करे तो दो एक हो जाते हैं।
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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