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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) एक सेठ को था, अपने एक भाई थे न? ब्यावर... ब्यावर है न? नहीं थे एक सेठ? हम आहार करने गये थे। मोतीलालजी, ब्यावर में मोतीलालजी सेठ थे न? गृहस्थ व्यक्ति, खानदानी व्यक्ति, बड़े गृहस्थ परन्तु पूरे शरीर में सुपारी-सुपारी जितने (फोड़े) पूरे शरीर में इतनी-इतनी गाँठे, हाँ! ब्यावर में मोतीलाल सेठ थे। उनके यहाँ आहार करने गये थे। बड़े गृहस्थ, इज्जतदार । बड़े सेठ, बड़े व्यक्ति... शरीर देखो तो सर्वत्र इतनी -इतनी गाँठें निकली हुई, हाँ! सुपारी (जैसी) – ऐसे गृहस्थ थे। लाख दवायें कितनी करते होंगे? धूल में भी कुछ नहीं हुआ, मरते तक शरीर ऐसा का ऐसा रहा, लो! यह मुझे हुआ – ऐसा मानना, बहिरात्मबुद्धि है – ऐसा कहते हैं। यह आत्मा में नहीं हुआ, यह तो जड़ की दशा में है। ___ इसी प्रकार जड़ की दशा में सुन्दरता, कोमलता, आकृति, नरमायी, इत्यादि जड़ की दशा में होने पर मुझे हुआ', 'यह मुझे हुआ, यह मैं हूँ, मैं सुन्दर हूँ, मैं नरम हूँ, मैं सुन्दर हूँ – यह बुद्धि शरीरादि को, पर को अपना माननेवाले की बुद्धि है।' समझ में आया? शरीरादि.... आदि में सब डाला है, हाँ! जिन्हें आत्मा से भिन्न कहा गया है। भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर ने परमार्थस्वरूप अपना निज स्वभाव, सच्चिदानन्दस्वरूप ज्ञायकमूर्ति अखण्डानन्द ध्रुव, अनादि-अनन्त स्वभाव, उससे जितने बहिर्भाव हैं, उन्हें अपना माने, उनसे अपने को लाभ माने – ऐसा यह मेरा कर्तव्य है, ऐसा माने, लो! ऐसा कर्ता निकलता है या नहीं? रामजीभाई का याद आया। समझ में आया? जिन्हें – रागादि को जिसका कर्तव्य स्वीकार करे, उस कर्तव्य से भिन्न कैसे होगा? कहो, रतिभाई ! समझ में आया? यह शुभभाव दया, दान, भक्ति, व्रतादि का शुभभाव मेरा कर्तव्य है और मैं वास्तव में उसका रचनेवाला हूँ – ऐसा जो मानता है, वैसे कर्तव्य को कैसे छोड़ेगा? ऐसे कर्तव्य को माननेवाला बहिरात्मा मिथ्यादृष्टि अज्ञानी है। आहा...हा...! मुमुक्षु – व्याख्या लम्बी बहुत हो गयी। उत्तर - लम्बी हो गयी। मस्तिष्क में उदयभाव याद आ गया। यह तो थोड़े बोल हैं, बहुत बोल हैं उसमें, नहीं? असिद्धत्वभाव, लो न ! असिद्धभाव, यह पढ़ने से उदयभाव दिमाग में आ गया। उदयभाव कितना असिद्ध है? चौदहवें गुणस्थान तक असिद्धभाव है।
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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