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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ५९ कहा समझ में आया? वहाँ होवे, तब सामने की चीज को निमित्त कहते हैं ? कि तू वहाँ निमित्त होने जा? किसी को भी निमित्त होने जा? उसकी पर्याय का काल नहीं और तू निमित्त होने जाये कब? ऐसे सूक्ष्म काल में निमित्त होना - ऐसा कहा है ? वहाँ कार्य हो तब साथ में हो उसे निमित्त (कहते हैं) उसके ज्ञान में आवे कि साथ में एक चीज है। यह तो क्रमबद्ध नियम हो गया। समझ में आया? मुमुक्षु - होवे ही न निमित्त? उत्तर - परन्तु होवे कौन? कौन हो? ए... प्रवीणभाई ! दूसरे को निमित्त, किसको निमित्त परन्तु? वह निमित्त किस पर्याय का है, वह निमित्त वहाँ होता है ? उसे पता है कि यह पर्याय अभी हुई और यह निमित्त इसे है ? असंख्य समय पहले इसे विचार आवे कि मैं ऐसा निमित्त होऊँ परन्तु निमित्त किसका? जो नैमित्तिक पर्याय का उसका काल नहीं उसमें तू निमित्त हो, उसका अर्थ क्या? समझ में आया? निमित्त होऊँ, यह तो अज्ञानी का भ्रम है। यह तो वहाँ पर्याय काल होता है, तब जो हो उसे एक समय के काल की अपेक्षा से उसे निमित्त कहते हैं, एक समय की अपेक्षा से। और यह कहता है मैं वहाँ निमित्त होऊँ.... उसका अर्थ, असंख्य समय का तेरा उपयोग, उसे निमित्त होऊँ अर्थात् किसका निमित्त परन्तु? किस पर्याय का निमित्त ? किस पर्याय का निमित्त? बड़ा भ्रम । धीरुभाई! आहा...हा...! सब ऐसा कहते हैं कि वहाँ के सब मूर्ख हैं। ऐसा भी कहते हैं। वे तो स्वतन्त्र हैं न ! स्वतन्त्र हैं। उन बेचारों को उनकी जवाबदारी का पता नहीं है। यहाँ तो कहते हैं.... समझ में आया? भगवान को विष्णु कहा जाता है। परमात्मा अर्थात् विष्णु, हाँ! परमात्मा अर्थात् विष्णु । विष्णु अर्थात् परमात्मा ऐसा नहीं । यह परमात्मा ऐसे होवें, वे एक समय में तीन काल-तीन लोक जानें, उन्हें विष्णु कहा जाता है। सर्वज्ञ परमेश्वर को विष्णु कहा जाता है। जगत का कर्ता-हर्ता अन्य कोई विष्णु नहीं है। इन्हें (भगवान को) परमात्मा कहा जाता है। बोध.... लो ठीक! 'णिम्मलु' कहा। 'णिक्कलु' कहा, 'सुद्ध' कहा। इतने तीन बोल लिये और 'जिणु' कहा। जिन से शुरु किया... फिर विष्णु लिया फिर बुद्ध लिया.. वह बुद्ध स्वपर तत्त्व को समझनेवाला बुद्ध... लो, उसे बुद्ध कहते हैं। क्षणिक को माने,
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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