________________
योगसार प्रवचन (भाग-१)
अन्तरात्मा का स्वरूप जो परियाणइ अप्प परू जो परभाव चएइ। सो पडिउ अप्पा मुणहिं सो संसार मुएइ॥८॥
परमात्मा को जानके, त्याग करे परभाव।
सत् पंडित भव सिन्धुको पार करे जिमि नाव॥ अन्वयार्थ – (जो अप्प परू परियाणइ) जो कोई आत्मा और पर को अर्थात् आप से भिन्न पदार्थों को भले प्रकार पहचानता है (जो परभाव चएइ) तथा जो अपने आत्मा के स्वभाव को छोड़कर अन्य सब भावों को त्याग देता है। ( सो पंडिउ) वही पण्डित भेदविज्ञानी अन्तरात्मा है, वह (अप्पा मुणहिं) अपने आप का अनुभव करता है, सो ( सो संसार मुएइ) वही संसार से छूट जाता है।
अब, अन्तरात्मा का स्वरूप।
जो परियाणइ अप्प परू जो परभाव चएइ।
सो पडिउ अप्पा मुणहिं सो संसार मुएइ॥८॥ क्या कहते हैं ? 'जो अप्प परू परियाणइ' जो कोई आत्मा को और पर को आपसे भिन्न पदार्थ को भले प्रकार पहचानता है.... क्या कहा? जो कोई स्वरूप आत्मा पूर्णानन्द, पूर्ण ज्ञान को जाने और उससे भिन्न अल्प ज्ञान, राग-द्वेष और परचीज सब भिन्न है, उसे भी जाने । (जाने) दोनों को। जो कोई आत्मा.... समझ में आया? आत्मा को और पर को.... दोनों को आपसे भिन्न पदार्थ को भले प्रकार पहचानता है.... यह तो 'परियाणइ' की व्याख्या की है। अपने से - भगवान पूर्णानन्द प्रभु से भिन्न सब, उसे भले प्रकार पहचानता है.... जानता है। कहो, समझ में आया?
जो परभाव चएइ लो, वह अपने आत्मा के स्वभाव को छोड़कर अन्य सब भावों का त्याग कर देता है... क्या कहा? भगवान आत्मा...! देखो! अन्तर आत्मा की