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________________ ४६० गाथा-६५ वह बसता है – ऐसा नहीं है। समझ में आया? गृहस्थ में हो या मुनि हो, भगवान आत्मा जहाँ राग से निराला श्रद्धा-ज्ञान में, अनुभव में आया, तो कहते हैं कि उसका बसना तो उसमें ही प्रेम से बसा है। समझ में आया? गृहस्थ या मुनि यह तो फिर स्थिरता के अंश में भेद है परन्तु वास और बसना तो और रुचि की जमावट जमी है आत्मा में; उसे राग होने पर भी (वह उसमें) नहीं बसता है। श्रावक या मुनि, राग में नहीं बसा है। इस व्यवहार के राग से ही समकिती गृहस्थ हो या मुनि, (वह) मुक्त ही है। जिससे मुक्त है, उसमें बसा कैसे? आहा...हा...! समझ में आया? कहा न? मीराबाई ने नहीं कहा? हैं? परणी मारा पियूजी नी साथ, बीजा न मिंढोल नहीं बाँधू.... नहीं रे बाँधू राणा नहीं रे बाँधू.... ऐ परणी मारा पियूजी नी साथ, बीजा न मिंढोल नहीं रे बाँधू....' इसी प्रकार सम्यक्त्वी (कहता है)। 'लगनी लागी चैतन्य के साथ, दूसरे के भाव नहीं रे आदरूँ....' उसमें कहा है न? 'धर्म जिनेश्वर गाऊँ रंग सू, भंग मा पड़सो प्रीत जिनेश्वर, बीजो मन मन्दिर आणो नहीं....' यह किसकी बात चलती है ? अप्पाणि वसेइ की (बात) चलती है। धर्म जिनेश्वर गाऊँ.... मेरा स्वभाव पूर्णानन्द प्रभु अखण्ड ज्ञायक आनन्दकन्द के मैं गुणगान गाता हूँ। धर्म जिनेश्वर गाऊँ रंग सू....' मैं इस पुण्य-पाप का गुणगान नहीं गाता – ऐसा कहते हैं। भंग में पड़ सो प्रीत जिनेश्वर, बीजो मन मन्दिर आणो नहीं....' यह प्रभु हमारे चैतन्य के प्रेम में भगवान पूर्णानन्द का नाथ जहाँ हमारी दृष्टि में बसा, 'बीजो मन मन्दिर आणो नहीं....' मेरे मन के मन्दिर में विकल्प को स्थान नहीं दूं कि यह मेरा स्थान है – ऐसा नहीं दूं। समझ में आया? ए अम कुलवट रीत जिनेश्वर, ए अम कुलवट रीत जिनेश्वर...' – अनन्त सन्तों के, सिद्धों के कुल की हमारी यह रीत है। समझ में आया? 'ए अम कुलवट रीत जिनेश्वर, धर्म जिनेश्वर गाऊँ रे... रंग सू' - आनन्दघनजी (कहते हैं)। ___ यहाँ कहते हैं आत्मा पुण्य और पाप के रागरहित आनन्दस्वरूप जहाँ भासित हुआ और रुचि में जमा तथा परिणमित हुआ – ऐसा धर्मात्मा गृहस्थ हो या मुनि हो । अप्पाणि वसेइ। समझ में आया? जहाँ जिसकी रुचि, वहाँ उसका निवास। जिसकी रुचि उठी,
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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