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________________ योगसार प्रवचन ( भाग - १ ) उत्तर – नहीं होती, गुरु के आधार बिना पर्याय कहाँ से होगी ? आत्मा के आधार बिना नहीं होती, ऐसा । कहो, समझ में आया इसमें ? ४२१ समाधिशतक में कहा है - मनुष्यों के साथ बात करने से मन की चंचलता होती है.... यह तो एकाग्रता कैसे करना ? उसका स्पष्टीकरण करते हैं । फिर मन में भ्रमभाव होता है..... इसे क्या कहा ? इसे ऐसा कहा (ऐसा ) वहाँ रुकना पड़ता I योगियों को मनुष्यों का संग छोड़ना चाहिए.... भगवान आत्मा को साधनेवाले एकान्त में जैसे बने वैसे अपने स्वरूप को साधें, दूसरे फिर कोई पूछे, फिर उसका जबाव ऐसा होता है या ऐसा नहीं होता, हाँ... न... (करने में) रुकना पड़े और अपनी एकाग्रता में व्यवधान पहुँचे... दूसरा समझे नहीं तो उसके घर रहा। यह व्यवहार, निश्चय का झगड़ा; निमित्त-उपादान का झगड़ा और क्रमबद्ध का झगड़ा-पाँच बोल का झगड़ा है। पाँच समझे तो वह परमेश्वर को समझे। लो, आहा... हा... ! झगड़ा खड़ा किया, उसमें रुकना पड़े, शरीर के लिए रुकना पड़े... कहो, समझ में आया ? कहते हैं कि यह सब परसंग के लिए... यह परसंग है न ? उसे खिलाना और पिलाना, दवा और चौपड़ना और.... कहो, समझ में आया? यह विकल्प का परसंग है । मुमुक्षु - एकान्त में जाये तो विकल्प टूट जाये । उत्तर - एकान्त में जाये तब तो अन्दर में (विकल्प) टूट जाये । एकान्त अर्थात् आत्मा... दूसरा एकान्त कौन-सा था ? जंगल में क्या है ? जंगल में बहुत कौवे काँव .... काँव... किया करते हैं । जंगल यहाँ अन्दर है, जंगल यहाँ पड़ा है, भगवान आत्मा शून्य है, राग से शून्य है, अन्तर गुफा में ध्यान कर, ऐसा शास्त्र में आता है। आता है न ४९ गाथा में? जयसेनाचार्यदेव में (आता है) । वह यहाँ यह कहते हैं। समझ में आया ? लो । ✰✰✰ निर्मोही होकर अपने अमूर्तिक आत्मा को देखे असरीरू वी सुसरीरू मुणि इहु सरीरूजडु जाणि । मिच्छा- मोहु परिच्चयहि मुत्ति णियं विण माणि ॥ ६१ ॥
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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