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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ४१७ (जड़ नाक) आत्मा का है ? यह पूर्णानन्द उसका नाक है, उसके कारण निभ रहा है। ऐसे पूर्णानन्द के नाक पर नजर करे, उसे मोक्ष का मार्ग अभ्यन्तर में प्रगट होता है। मूल तो ऐसा है, समझ में आया? बाहर के नाक का यहाँ क्या काम है ? वह तो निमित्त से बात की है। अन्दर में मुख्य वस्तु (निज स्वरूप है)। लोग नाक के लिए मरते हैं न? देखो न ! बड़ी इज्जत वह नाक... आत्मा की बड़ी इज्जत अनन्त केवलज्ञान का स्वामी वह उसका नाक है। ____ भगवान आत्मा की प्रतिष्ठा कितनी? आहा...हा...! जो केवलज्ञानी की वाणी में न आवे - ऐसा उसका सर्वज्ञपन है। केवलज्ञान की वाणी में न आवे ऐसा अनन्त आनन्द है, केवलज्ञानी की वाणी में न आवे इतना तो अनन्त... अनन्त... अनन्त... अनन्त... अनन्त... अनन्त... का बल है, बल । आहा...हा...! वह अन्तर्बल पड़ा है, वह इसका नाक है, वह इसकी इज्जत है। समझ में आया? मुमुक्षु - अमुक भाई का क्या नाक? उत्तर – उसमें क्या भला? वह मरकर फिर नरक जाये, लो! अमुक भाई की क्या बात? वहाँ नरक में धक्का खाये, वहाँ भी ऐसा कहलायेगा इसका? आहा...हा...! राजा, महाराजा, ऐसे पलंग पर सोते हों, आहा...हा...! वे मरकर नरक गये। वे अभी चीख पुकार करते हैं। अरे... जिसे लम्बी दृष्टि नहीं, उसे देखने का द्रव्य का पर्यायकाल कैसा होगा? समझ में आया? आहा...हा...! ऐसे चक्रवर्ती महाराज....! खम्बा अन्नदाता ! सोलह-सोलह हजार देव सेवा (करें)। छियानवें हजार पद्मिनी जैसी (रानियाँ) सेवा करें, वह ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती मरकर सातवें नरक के पाताल में गया। क्या खम्बा... खम्बा...! क्या बापू! उसकी क्या बात !! यहाँ ऐसा था, वहाँ क्या था? बापू! उसके जैसे दुःख किसे हैं ? वहाँ ऐसा है। आत्मा जैसी चीज किसकी, बापू! उसकी क्या बात करना! आहा...हा...! जिसके आत्मा में... समझ में आया? भगवान आत्मा वाणी को गम्य नहीं, विकल्प को गम्य नहीं, मन, वाणी, देहादि पर से वह गम्य नहीं। समझ में आया? उसकी इज्जत क्या कहना! उसकी इज्जत की क्या बात करना ! ऐसा जो भगवान आत्मा अपने अभ्यन्तर में अपना स्व
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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