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गाथा-६०
रखकर अन्दर शरीररहित.... अर्थात् अन्दर में शरीररहित ऐसे आत्मा को शुद्ध कुन्दन समान बनाता है। लो, स्वर्ण समान बनाता है।
जो मोक्ष प्राप्ति के अनुकूल शरीर आदि सामग्री... यह कुछ नहीं। तो वह साधक उसी भव में और नहीं तो.... जब तक ऐसे निमित्त नहीं, वहाँ तक ऐसा पुरुषार्थ भी नहीं, ऐसा लेना। कहो, समझ में आया? आत्मा को देखता है, लो! शरीररहित शुद्ध आत्मा को देखता है। फिर बारम्बार जन्म धारण नहीं करता। भगवान आत्मा ज्ञानमूर्ति होने से अपनी ज्ञान की पूर्ण निर्मलता प्रगट करने के लिए अभ्यन्तर मोक्ष का साधन करता है। अन्तर ध्यान करके... फिर कभी माता का दूध नहीं पीता। न पीवे जननी दूध...' दूसरी माता के गर्भ से अवतरित नहीं होंगे। समझ में आया? अपने आनन्द और ज्ञानस्वरूप का ध्यान... देखो! इसमें विकल्प, राग, निमित्त और व्यवहार की बात कहीं नहीं रही।
मुमुक्षु - कहाँ गयी? उत्तर – उसके घर, उसमें। (निज) घर में नहीं - ऐसा कहते हैं।
भगवान आत्मा चैतन्यबिम्ब ज्ञायकस्वरूप का अग्र ध्यान, उसे मुख्य लक्ष्य में लेकर अन्तरध्यान करे तो मोक्ष का मार्ग अभ्यन्तर अपने पास है। समझ में आया? अन्दर मोक्षमार्ग है अर्थात् विकल्प में नहीं, निमित्त में नहीं, इस संहनन, मनुष्य देहादिक में मोक्षमार्ग नहीं है। समझ में आया?
मुमुक्षु – नासिका पर दृष्टि रखे......
उत्तर – यह नासिका अर्थात् ऐसे रखे अर्थात् अन्दर जाये ऐसा। दूसरा क्या? इसका अर्थ कि तब ऐसा होता है। यह आँख फिराकर ऐसे जाये तो अन्दर जाये, ऐसा कहते हैं। नासिका पर (अर्थात्) ऐसे बाहर रखनी है ? समझ में आया या नहीं? नासिका का अर्थ कि ऐसे जो आँख फिरती है, उसे अन्दर में लाना – ऐसा इसका अर्थ है । (दृष्टि को) अन्दर में लाना – ऐसा कहते हैं। नासिका की बातें व्यवहार की है। नासिका पर कहाँ आँख लानी है ? वह तो ऐसे अन्दर लाने से अन्दर जाये, वस्तु के स्वभाव पर दृष्टि जाये, उसे यहाँ नासाग्र दृष्टि कहा जाता है – ऐसा कहते हैं। लो, समझ में आया?
आत्मा का नाक पूर्णानन्द का नाथ प्रभु यह उसका – आत्मा का नाक है। यह नाक