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आग
आत्मा के ज्ञान के लिए नौ दृष्टान्त हैं
रयण दीउ दियर दहिउ दुद्धु घीव पाहाणु ।
सुरूउ फलिह अगिणि णव दिट्ठता जाणु ॥ ५७ ॥
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रत्न - हेम-रवि-दूध दधि, घी पत्थर अरु दीप । स्फटिक रजत और अग्नि नव त्यों जानों यह जीव ॥
अन्वयार्थ – रत्न, दीप, सूर्य, दही-दूध-घी, पाषाण, सुवर्ण, चाँदी, स्फटिक, इन नौ दृष्टान्तों से जीव को जानना चाहिए।
वीर संवत २४९२, आषाढ़ शुक्ल ११,
गाथा ५७ ५८
मंगलवार, दिनाङ्क २८-०६-१९६६ प्रवचन नं. २०
यह योगसार शास्त्र है, ५७ वीं गाथा । ५६ गाथा हो गयी - ( गाथा) ५६ में ऐसा कहा कि यह आत्मा ज्ञानस्वरूप है। इस ज्ञान को ज्ञान से प्रत्यक्ष न जाने, तब तक उसे आत्मा का कुछ कार्य नहीं होता, क्योंकि जाननेवाला प्रत्यक्ष ज्ञानस्वरूप, चैतन्यप्रकाशस्वरूप
। वह चैतन्य, चैतन्य को जाने तो उसे प्रत्यक्षपना होता है तो उसे युक्ति होती है और प्रत्यक्ष जानकर वेदन में- अनुभव में विशेष ले तो कर्म - बन्धन से छूटता है । उस ज्ञान पर यहाँ दृष्टान्त दिया जाता है। चैतन्य ज्ञान का प्रकाश - ऐसा उसका स्वरूप है, उसका प्रत्यक्षपना होना – यह उसका स्वभाव है और यही उसे अनुभव करके मुक्ति देनेवाला है। इसमें दृष्टान्त दिये हैं।
आत्मा के ज्ञान के लिए नौ दृष्टान्त हैं ।