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गाथा - ५६
उत्तर - नहीं, एक ही प्रकार । व्यवहार से जाना, वह जानना है ही नहीं । ज्ञान का सीधा ज्ञान हुए बिना जानना, वह ज्ञान है ही नहीं । आहा... हा... ! समझ में आया ? मुमुक्षु - सीधा अर्थात् ऐसा......
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उत्तर सीधा अर्थात् राग बिना, अन्दर प्रत्यक्ष ज्ञान | शास्त्र का ज्ञान और उसका उत्पन्न हुआ विकल्प, उससे आत्मा (जाना) ऐसा नहीं है । 'फुडु' शब्द इसलिए प्रयोग किया है।
भाई! यह तो मूलमार्ग है। भगवान आत्मा को अन्दर ज्ञान से ज्ञान का प्रत्यक्ष स्वसंवेदन होना उसे ज्ञान कहते हैं - ऐसा यहाँ कहते हैं। भगवान आत्मा चैतन्यबिम्ब प्रभु का इसे ज्ञान से ज्ञान होना, सीधा स्वसंवेदन होना, उसे आत्मा का ज्ञान कहा जाता है।
मुमुक्षु - सीधा कहा अर्थात् टेढ़ा नहीं ।
उत्तर – टेढ़ा (अर्थात्) इस राग से किया और विकल्प से किया, शास्त्र से किया, वह कहीं ज्ञान नहीं है, वह टेढ़ा कहलाता है । आहा... हा... ! यहाँ तो निराला प्रभु, अत्यन्त निराला है न ? आहा...हा... ! वस्तु तो वस्तु परमात्मस्वरूप ही स्वयं है । कल तो आया नहीं था ? परमात्मस्वरूप में स्थित आत्मा है। स्थित है । परमात्मस्वरूप में स्थित है, वह राग में पुण्य में अल्पज्ञान में भी नहीं । आहा... हा... ! ओ...हो... ! सन्तों की कथनी (ने) मार्ग को सरल करके ऐसा जगत को समझाया है ! भाई ! तू तो तेरी हथेली में - हाथ में ऐसा है न! पूर्ण सत्ता । कहा नहीं था ?' सततम् सुलभं' आया था या नहीं ? भगवान ! तू तुझे सुलभ न हो तो तुझे कौन सी चीज सुलभ होगी ? आहा... हा...!
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भाई ! ज्ञानानन्द की ज्योत है न! अतीन्द्रिय आनन्द की मूर्ति प्रगट... प्रगट... प्रगट... प्रगट है न ! अस्तिरूप से प्रगट है, उसे नास्तिरूप कैसे कहना ? आहा... हा...! इस सब व्यवहार से मुक्त भगवान आत्मा है । आहा... हा... ! देखो, तो सही ! यह आ गया है सम्यग्दृष्टि व्यवहार से मुक्त है - ऐसा इसमें आ गया है। समझ में आया ? हो भले ... जैसे परद्रव्य है, ऐसे हो भले - दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजा (का) भाव - शुभभाव होता है परन्तु सम्यक् आत्मा ज्ञायकमूर्ति का जिसने सीधा ज्ञान करके जाना, वह धर्मी तो व्यवहार से