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________________ ३७४ गाथा-५४ कल, हाँ! कि हम विनती करने आनेवाले हैं। ए...ई...! मैंने कहा अब 'अभी शरीर-वरीर काम नहीं करता, अब अपना मन....' नहीं, हम आयेंगे। कहे, जयन्तीभाई! और दो-चार -पाँच आकर (कहें), पालीताना आये सोलह वर्ष हो गये, एक बार तो आओ, पधारो। लो, इन्हें अभी नजदीक लगता है। यहाँ तो कहते हैं कि इस यात्रा करने की बड़ी यात्रा यह कि यह भगवान आत्मा अनन्त शान्तरस का पिण्ड है, यह मन और इन्द्रियों से दूर करके राग हटाकर अन्दर में स्थिर होना, यह बड़ी यात्रा है। आहा...हा...! ऐ...ई...! माँगीरामजी ! वह तो शुभभाव होता है, परन्तु वह कहीं धर्म है और उसके कारण अन्तर आत्मसन्मुख जाया जाता है, इस बात में कोई दम नहीं है। आहा...हा...! समझ में आया? भक्ति, यात्रा होती है परन्तु उसका परिणाम शुभभाव जितना है। समझ में आया? परन्तु वह शुभभाव हुआ, इसलिए आत्मसन्मुख जाएगा – ऐसा नहीं है। उनकी दोनों की दशा और दिशा में अन्तर है। आहा...हा...! एक व्यक्ति ने पूजा-भक्ति-यात्रा शुभभाव है, वह पूरा उत्थापित कर दिया (क्योंकि) जब तक स्वरूप में स्थिर नहीं हो सके, तब तक ऐसा भाव आता है परन्तु उस भाव द्वारा धर्म होता है, उस भाव के द्वारा धर्म का कारण होता है, इस बात में दम नहीं है। अरे...अरे... ! कठिन बात परन्तु.... है न? बुद्धिमान मन और इन्द्रियों से छुटकारा पाता है... भगवान आत्मा, मन और इन्द्रियों से हट जाये, यह इसे करने का है। तो किसी को भी पूछने की आवश्यकता नहीं रहती।कुछ पूछने की जरूरत नहीं, यह तो आता है न? निर्जरा (अधिकार) में आता है। निर्जरा (अधिकार) २०६ (गाथा) क्या बहुत पूछने का काम है तुझे? अन्दर जा न ! ए...! आहा..हा...! फिर करके तो यह करने का है. यह तो त करता नहीं. परे दिन पछताछ करता है परन्तु इसमें क्या है ? आहा...हा... ! भगवान चिदानन्दमूर्ति आत्मा अखण्ड प्रभु सर्वज्ञ परमेश्वर त्रिलोकनाथ तीर्थंकर ने आत्मा देखा, ऐसे आत्मा के अन्तर में स्थिर होना, दृष्टि करके स्थिर होना, यह मुख्य धर्म का कर्तव्य और कार्य है। अब, यह करता नहीं और पूरे दिन पूछताछ करता है कि इसका कैसे और इसका कैसे? सब इसका (ऐसा कि) अन्दर स्थिर हो यह। ले, समझ में आया? यह बाहर से कोई क्रियाकाण्ड से या पूजा-भक्ति
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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