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हुलहंति फुडु) यही कारण है कि जिससे ये जीव निर्वाण को नहीं पाते स्पष्ट है ।
५२
यह आया ।
गाथा - ५२
धंधइ पडियउ सयल जगि गवि अप्पा हु मुणंति ।
तहिं कारण ए जीव फुडु ण हु णिव्वाणु लहंति ॥ ५२ ॥
यह बात
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जगत प्रपंचों में उलझा प्राणी आत्मा को नहीं पहचानता। देखो
जगत के सब प्राणी अपने-अपने धन्धों में व्यवहार में फँसे हुए हैं.... कोई कमाना, कोई खाना, कोई पीना, कोई भोग, समझ में आया ? दुनिया में प्रसिद्धि में पड़ना
• कुर्सी पर बैठना, प्रतिष्ठा पाना सबके आगे सबसे बड़ा हुआ दिखना इस धन्धे में पड़े हुए हैं । त्यागी नाम धरानेवाले भी पुण्य- दया, दान, व्रत के व्यवहार-धन्धे में पड़े हुए हैं । समझ में आया ? उन्हें फुर्सत नहीं मिलती, यह मन्दिर बनाना है और ऐसा कराना है, यह होली, यह सब राग का धन्धा है। समझ में आया ?
मुमुक्षु धन्धा तो छोड़ दिया है ।
उत्तर - कहाँ धन्धा छोड़ा ? कौन - सा धन्धा परन्तु ? जिसे यह बाहर की .... यह कहते हैं।‘धंधइ पडियउ सयल जगि' पूरा जगत व्यापार-धन्धे ( में पड़ा है), राग के धन्धे में पड़ा है फिर कोई अशुभराग का धन्धा कोई शुभराग का धन्धा (करता है) । आमा कौन है ? उसे देखने और विचारने के लिए चौबीस घण्टे फुरसत में नहीं होता। यह खाना है और यह पीना है । यह नहीं खाना और यह धन्धा, यह दया पालन की और इसकी भक्ति की। मैंने उपदेश दिया उसमें समझे। गया, मर गया - ऐसे का ऐसा कहते हैं । शुभराग के धन्धे में भगवान को खोकर बैठा ।
मुमुक्षु - विस्तार विशाल है।
उत्तर यह विशाल ही है । योगसार है या नहीं ? क्या ( कहा ) ? आत्मा ज्ञानानन्दस्वभाव में जुड़ान होवे, उसका नाम योग है; इसके अतिरिक्त रागादि में जुड़ान हो