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________________ ३६२ हुलहंति फुडु) यही कारण है कि जिससे ये जीव निर्वाण को नहीं पाते स्पष्ट है । ५२ यह आया । गाथा - ५२ धंधइ पडियउ सयल जगि गवि अप्पा हु मुणंति । तहिं कारण ए जीव फुडु ण हु णिव्वाणु लहंति ॥ ५२ ॥ यह बात ✰✰✰ जगत प्रपंचों में उलझा प्राणी आत्मा को नहीं पहचानता। देखो जगत के सब प्राणी अपने-अपने धन्धों में व्यवहार में फँसे हुए हैं.... कोई कमाना, कोई खाना, कोई पीना, कोई भोग, समझ में आया ? दुनिया में प्रसिद्धि में पड़ना • कुर्सी पर बैठना, प्रतिष्ठा पाना सबके आगे सबसे बड़ा हुआ दिखना इस धन्धे में पड़े हुए हैं । त्यागी नाम धरानेवाले भी पुण्य- दया, दान, व्रत के व्यवहार-धन्धे में पड़े हुए हैं । समझ में आया ? उन्हें फुर्सत नहीं मिलती, यह मन्दिर बनाना है और ऐसा कराना है, यह होली, यह सब राग का धन्धा है। समझ में आया ? मुमुक्षु धन्धा तो छोड़ दिया है । उत्तर - कहाँ धन्धा छोड़ा ? कौन - सा धन्धा परन्तु ? जिसे यह बाहर की .... यह कहते हैं।‘धंधइ पडियउ सयल जगि' पूरा जगत व्यापार-धन्धे ( में पड़ा है), राग के धन्धे में पड़ा है फिर कोई अशुभराग का धन्धा कोई शुभराग का धन्धा (करता है) । आमा कौन है ? उसे देखने और विचारने के लिए चौबीस घण्टे फुरसत में नहीं होता। यह खाना है और यह पीना है । यह नहीं खाना और यह धन्धा, यह दया पालन की और इसकी भक्ति की। मैंने उपदेश दिया उसमें समझे। गया, मर गया - ऐसे का ऐसा कहते हैं । शुभराग के धन्धे में भगवान को खोकर बैठा । मुमुक्षु - विस्तार विशाल है। उत्तर यह विशाल ही है । योगसार है या नहीं ? क्या ( कहा ) ? आत्मा ज्ञानानन्दस्वभाव में जुड़ान होवे, उसका नाम योग है; इसके अतिरिक्त रागादि में जुड़ान हो
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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