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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ३४१ मन न घटे आयु घटे, घटे न इच्छा भार। नहिं आतम हित कामना, यों भ्रमता संसार॥ अन्वयार्थ – (आउ गलइ) आयु गलती जाती है (मणु णवि मइल) परन्तु मन नहीं गलता है (आसा णवि गलेइ) और न आशा तृष्णा ही गलती है ( मोहु फुरइ) मोहभाव फैलता रहता है ( अप्पहिउ णवि) किन्तु अपने आत्मा का हित करने का भाव नहीं होता है (इम संसार भमेइ) इस तरह यह जीव संसार में भ्रमण किया करता है। ४९ - आशा-तृष्णा ही संसार भ्रमण का कारण है। आउ गलइ णवि मणु गलइ णवि आसा हु गलेह। मोहु फुरइ णवि अप्प-हिउ इम संसार भमेइ॥४९॥ कहते हैं, अरे! आत्मा, आयु तो बीती जा रही है। भाई! जो कुछ आयु लेकर आया - ८०-८५-९०-१००, यह आयुष्य तो बीता जा रहा है, बापू! आयुष्य गलता है परन्तु तेरी तृष्णा नहीं गलती। आहा...हा... ! है न? आयु गलती जाती है परन्तु मन नहीं गलता है.... आहा...हा...! क्योंकि जहाँ पर की भावना है, उसमें मन गले किस प्रकार? आत्मा आनन्दस्वरूप की श्रद्धा-ज्ञान के बिना तृष्णा नहीं घटती। अज्ञानी को, यह करूँ, यह करूँ, यह करूँ, यह करूँ.... पुण्य-पाप करूँ, पुण्य-पाप करूँ, पुण्य-पाप करूँ.... यह तृष्णा चलती जाती है। न आशा, तृष्णा गलती है। बड़ा हुआ ऐसे अन्दर गहरे-गहरे आशा बढ़ती ही जाती है, उस आशा का छोर लम्बा होता है। आशा का बीज बोया हो और फिर बड़ा हो, वृद्ध हो, तो हो गया, कर सके नहीं फिर झपट्टे मारे, अन्दर विचार के झपट्टे मारे, इसका ऐसा होवे तो ठीक.... इसका ऐसा होवे तो ठीक।अब कुछ कर सकता नहीं ठीक हो या न ठीक हो, तुझे क्या काम? आत्मा का ठीक हो तो तेरा कल्याण होगा। समझ में आया? आशा, तृष्णा गलती नहीं है। मोहभाव फैलता रहता है। भगवान आत्मा के स्वरूप की श्रद्धा और भान बिना
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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