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________________ ३४ गाथा-५ वह) कहता है। धूल में भी नहीं होता। शुभ को छोड़ तो लाभ होता है, शुभ में से शुद्धता होती है ऐसा नहीं। समझ में आया? यह क्या कहा? देखो ! पढ़ो। जइ वीहउ चउगइगमणु तउ परभाव चएवि। परभाव की व्याख्या क्या? जितना भगवान आत्मा ज्ञातादृष्टा का भण्डार है, उससे (विपरीत) जितना एक तीर्थंकर गोत्र जिस भाव से बाँधे, वह परभाव, परभाव, परभाव है। समझ में आया? यदि तुझे चार गति के दुःख का भय लगा हो तो परभाव को छोड़। परभाव चहवि छोड़ दे परभाव। यह परभाव माने तो न ! सावद्ययोग प्रत्याख्यान, फिर ऐसा कहता था। सावद्ययोग का प्रत्याख्यान होता है। सुन न ! शुभभाव के प्रत्याख्यान उस समय छूटता नहीं, इसलिए ऐसा करते हैं । दृष्टि में तो समस्त भाव का निषेध है। समझ में आया? सावद्ययोग के प्रत्याख्यान में अशुभ छूट जाता है और शुभ दृष्टि में से छूटता है परन्तु अस्थिरता में से नहीं छूटता, इतना सावद्ययोग का त्याग करता है। दृष्टि में से तो सब पाप और पुण्य परिणाम का त्याग है । अस्थिरता के नहीं छूटते इसलिए सावद्ययोग का इस प्रकार त्याग किया जाता है। कर्मे हणं ते सामायिक, सावद्ययोग और प्रत्याख्यान। उसे एक पत्र आया था न? एक पत्र आया था। सामायिकमहावीर की सामायिक का हम बहुत प्रचार करते हैं। कहा, महावीर की सामायिक को पहचानना तो पड़ेगा, सामायिक किसे कहना? यह बैठा ऐसा करके, णमो अरिहंताणं बोले वह सामायिक ? मिथ्यादर्शन की बड़ी शल्य तो अन्दर पड़ी है। मुमुक्षु - बोलता है.... उत्तर - बोले उसमें क्या? राग मुझे लाभदायक, यह शरीर मुझे है, इसका अर्थ यह हुआ। राग मुझे लाभदायक है (-ऐसा माननेवाला) इस शरीर को जीव मानता है। समझ में आया? एक कहता था, शरीर और जीव भिन्न है। अरे... ! शरीर और जीव भिन्न का अर्थ - शरीर, कर्म, राग, पुण्य-पाप, यह सब शरीर है। भगवान आत्मा तो चिदानन्द ज्ञातास्वरूप है। राग के कण को भी अपना माने, वह बहिरआत्मा, शरीर को ही आत्मा मानता है। समझ में आया? क्योंकि राग का लक्ष्य जाएगा, शरीर की क्रिया पर और वह क्रिया होगी उसे मानेगा कि इसकी क्रिया कर सकता हूँ। 'परभाव चहवि' कहते हैं, यदि तुझे चार गति का डर लगा हो (तो) परभाव
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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