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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
... भयभीत हुआ हो तो परभावों को छोड़ दे। एक सिद्धान्त, बहुत संक्षिप्त, अत्यन्त संक्षिप्त । भगवान आत्मा सच्चिदानन्द प्रभु, यह पुण्य और पाप, दया और दान, व्रत और भक्ति, तप और जप - यह सब राग परभाव है, परभाव है। इसे श्रद्धा में से छोड़ ! यहाँ से बात शुरु की है। समझ में आया ? यदि चार गति से भय पाया हो (तो) परभावों को छोड़ दे। बहुत संक्षिप्त बात । यहाँ उसका अर्थ है कि जो लोग ऐसा कहते हैं न कि भाई ! व्यवहार करते-करते निश्चय प्राप्त होगा.... यहाँ कहते हैं कि जो व्यवहार है, वह परभाव है, उसे छोड़ तो आत्मा प्राप्त होगा । आहा... हा... ! समझ में आया ?
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यही पुकार करते हैं। व्यवहार करो... व्यवहार करो... भाई ! पहले व्यवहार करोदया पालो, संयम पालो, इन्द्रिय दमन करो। धूल में भी तेरा पालन राग है। सुन न ! मुमुक्षु - विभाव की ठीक से सम्हाल रखते हैं ।
उत्तर - - हाँ, सम्हाल रखो । विभाव की सम्हाल रखो (- ऐसा ) उसका अर्थ हुआ या नहीं? समझ में आया या नहीं ? वह कल भी कोई आया था, भाई ! जयपुरवाला... वह कहता था कि अब गड़बड़ तो बाहर चली है। वह हमारे स्थानकवासी में बड़ा विद्वान है - गति... कैसा ? गतिलाल, गतिलालजी पाटनी । वे यह आत्मधर्म पढ़ते हैं, स्थानकवासी हैं, बड़े से बड़ा पण्डित है, वह यह पढ़ता है कि निश्चय के बिना व्यवहार - फ्यवहार नहीं होता। पूरे साधु सब अभी ऐसा कहते हैं। अब निश्चय की बात करने लगे हैं। निश्चय से मुक्ति होती है, यह बात सत्य परन्तु व्यवहार के बिना नहीं होती - यह बात भी सत्य । इसलिए परभाव का अभाव करना - ऐसा नहीं । समझ में आया ? व्यवहार अर्थात् परभाव । व्यवहार का अर्थ दया, दान, व्रत, भक्ति, तप, जप का विकल्प उठता है, वह सब परभाव है । वह व्यवहार अर्थात् परभाव, उस परभाव के बिना नहीं चलता, निश्चय उसके बिना नहीं होता । (-ऐसा माननेवाले) मूढ़ है । यहाँ तो पहले से ही कहा है, देखो ! क्या कहते हैं ? आहा...हा...!
परभाव चहवि 'चहवि' अर्थात् छोड़ दे। तेरी दृष्टि में यह मिथ्यात्वभाव पड़ा है। यह परभाव हो, कुछ-कुछ राग की मन्दता हो, कषाय की मन्दता हो, तो अपने..... वह कहता था, अशुभ में से शुभ और शुभ में से शुद्ध (होंगे)। बातें तो चलने लगी हैं, (ऐसा