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धर्म रसायन को पीने से अमर होता है जइ जर-मरण-मरालियउ तो जिय धम्म करेहि। धम्म-रसायणु पियहि तुहुँ जिम अजरामर होहि॥४६॥
जरा मरण भय हरण हित, करो धर्म गुणवान।
अजरामर पद प्राप्ति हित, कर धर्मोषधि पान॥ अन्वयार्थ - (जिय) हे जीव! (जड़ जर-मरण) यदि तू जरा व मरण के दुःखों से भयभीत है (तो धम्म करेहि) तो धर्म कर (तुहुँ धम्मरसायण पियहि ) तू धर्म रसायन को पी (जिम अजरामर होहि) जिससे तू अजर-अमर हो जावे।
वीर संवत २४९२, आषाढ़ शुक्ल ६,
गाथा ४६ से ४९
शुक्रवार, दिनाङ्क २४-०६-१९६६ प्रवचन नं.१७
योगीन्द्रदेव मुनि, दिगम्बर मुनि हुए। उन्होंने यह योगसार बनाया। योगसार का अर्थ - आत्मा का स्वभाव शुद्ध और आनन्द है, उसमें एकाग्रता का होने का नाम योग कहा जाता है। उसमें सार अर्थात् निश्चय स्वभाव की स्थिरता (होवे), उसे योगसार कहते हैं। ४५ गाथा हो गयी है।
४६ - धर्म रसायन को पीने से अमर होता है। धर्मरूपी औषध पीने से अमर होता है। इस गाथा में ऐसा कहते हैं।
जइ जर-मरण-मरालियउ तो जिय धम्म करेहि।
धम्म-रसायणु पियहि तुहुँ जिम अजरामर होहि॥४६॥ हे जीव! यदि तू जरा और मरण के दुःखों से भयभीत है.... जरा-मरण और