________________
योगसार प्रवचन (भाग-१)
३१९
करूँगा तो (सामनेवाला) दस हजार माँगता है (इसलिए उसने कहा) सौ भी नहीं (देना निकलता)। उसने दो शून्य चढ़ाये, इसने निकाल डाले । ऐसा कहा था। इन श्वेताम्बरों ने भगवान के सिर पर इतने अधिक गहने (चढ़ाकर) शून्य चढ़ा दिये। स्थानकवासी के पास से माँगा तो उसने मूल में से निकाल दिया। ए.... हरिभाई!
(संवत्) १९८२ की बात है, ४० वर्ष हुए, रात्रि में उपाश्रय में बैठे थे। मणिलाल सुन्दरजी' थे। देखो! भाई! मूर्ति तो है, कहो क्या कहना है तुम्हारे? परन्तु मूर्ति चाहिए सादी। श्वेताम्बर थे। पता है, श्वेताम्बर थे 'बढ़वा' जाते हुए आते थे। रात्रि में आये थे, वहाँ हमारे पास आये थे। देखो! मूर्ति है परन्तु मूर्ति में ऐसा नहीं होता, यह तो बढ़ा डाला, बढ़ाकर स्थानकवासी से माँगा तो वह कहते हैं, मूल में ही नहीं है। कहा, ऐसा बना है। बात सुनो, कहा। पाँच, सात व्यक्ति रात की चर्चा में थे, उस समय ऐसी कोई चर्चा नहीं थी। महाराज कुछ कहते होंगे, उसमें कुछ सन्देह का स्थान (नहीं होता)। वे कुछ कहते होंगे - ऐसा कहकर निकाल देते परन्तु यह तुम्हारा झूठा कर देते हैं।
यहाँ तो कहते हैं, जगत् में व्यवहार को ही सत्य माननेवाले बहुत हैं। क्या? यह व्यवहार देव-गुरु-शास्त्र की भक्ति, देवालय, मन्दिर आदि परमात्मा ये ही मानो सत्य है, इस व्यवहार को ही सत्य माननेवाले बहुत जीव हैं। सब ऐसा ही कहते हैं कि घड़ा कुम्हार ने बनाया.... देखो! यह जरा ठीक है, भाई ! घड़े को कुम्हार ने बनाया (ऐसा अज्ञानी देखता है परन्तु) घड़ा मिट्टी से बना है... पूरी दुनिया कहती है कि कुम्हार ने घड़ा बनाया, कुम्हार ने घड़ा बनाया.... व्यवहार को सत्य मान लेते हैं। यह तो व्यवहार है, इसे सत्य मान लेते हैं। समझ में आया? इसी प्रकार भगवान, तीर्थ और देवालय तो व्यवहार है, इनसे सत्य आत्मा मान ले, मूढ़ है – ऐसा कहते हैं। समझे न? घड़ा मिट्टी से बना है - ऐसा कोई नहीं कहता। कहते हैं कोई ? उसमें आता है या नहीं ? तेरा (उपादान का) नाम भी कौन याद करता है? उस उपादान से (निमित्त) कहे – जहाँ हो वहाँ पूछे तो हमारी बात है। घड़ा कुम्हार ने किया, रोटी स्त्री ने की, पानी भर आये.... यह घिसने का किया इस अमुक पत्थर द्वारा अच्छा सिल-बटना, सिल-बटना अर्थात् बारीक किया। यह सब बातें इस निमित्त से तो पूरी दुनिया बोलती है और तू उपादान की बात कहाँ पूछने जाता