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________________ २९० गाथा -४० भी ज्ञान और आनन्दमय हैं - ऐसा भासित होता है। समझ में आया ? यह आत्मा ही ज्ञान और आनन्दस्वरूप है । यह शरीर, वाणी तो जड़ है, मिट्टी है । दया, दान, काम, क्रोध के शुभ-अशुभभाव होते हैं, वह तो विकार है, उस विकाररहित आत्मा अन्तर में जहाँ जाना, कहते हैं कि, उसे अब क्या करना रहा ? समझ में आया ? अब कौन समाधि करे..... समाधि अर्थात् ऐसे स्थिर होओ... जाना कि आत्मा है, उसमें स्थिर हुआ है। समझ में आया ? कौन अर्चा या पूजन करे..... स्वयं भगवान ज्ञानस्वरूपी आनन्दमूर्ति का जहाँ भान हुआ, वह आत्मा में ही स्वयं परमात्मस्वरूप का धारक, किसकी अर्चा-पूजा करना इसे अब ? पूजा और अर्चा जो पर की करता था, वह शुभभाव था। भगवान की पूजा और अर्चा यह तो शुभ-पुण्यभाव था । वह पुण्यभाव जहाँ मैं नहीं, मैं तो ज्ञानस्वरूपी चिदानन्द आत्मा हूँ – ऐसा भान होने पर वह किसकी पूजा करे ? वह तो अपनी पूजा करता है । आहा....हा... ! अर्चा .... अर्चा है न ? किसे अर्चे ? भगवान को अर्चता है न ? पूजा करता है, वह तो शुभभाव होता है तब होता है । परन्तु जहाँ आत्मा ही शुभभाव से भिन्न भासित हुआ, चैतन्यस्वरूप भासित हुआ और उसमें स्थिर हुआ तो वह स्वयं की पूजन करता है, स्वयं, स्वयं को अर्चना और बहुमान देता है। अब उसे दूसरे की पूजन करना नहीं रहा। समझ में आया ? कौन स्पर्श- अस्पर्श.... करे। समझ में आया ? यह अमुक हाथ का स्पर्श करना है, अमुक हाथ का स्पर्श नहीं करना, यह स्पर्श करने योग्य है, यह अस्पर्श करने योग्य है, यह छूने योग्य नहीं, यह छूने योग्य नहीं, यह छूने योग्य है .... परन्तु वस्तु के ज्ञानस्वरूप में यह है कहाँ ? किसे स्पर्शे और किसे अस्पर्शे ? स्पर्श- अस्पर्श की बुद्धि तो बाह्य लौकिक में है। भगवान आत्मा सच्चिदानन्द प्रभु पूर्णानन्द का स्वरूप जहाँ स्वयं ही आत्मा सच्चिदानन्द है - ऐसा अन्तर में भान का भास और भाव प्रगट हुआ तो कहते हैं कि किसके साथ स्पर्श - अस्पर्श ? फिर इस चीज को छूना नहीं, इस माँस को छूना नहीं, पानी को छूना, अच्छी चीज को (छुआ जाता है), यह वस्तु में कहाँ रहा ? समझ में आया ? छोपु अछोपु करिवि है। कौन स्पर्श करे ? वस्तु ही भगवान आत्मा अपने चैतन्यमन्दिर में विराजमान है, उसे
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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