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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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उत्तर – इसलिए पूरा कहाँ पढ़ते हैं ? मुमुक्षु - यह सब जानने का प्रयत्न न करे और भगवान को सिर पर धार ले तो?
उत्तर - उसमें कौन भगवान चले? उसका लेकर आये हैं यह – वहाँ ऐसा कहते हैं – 'ढींग घणि माथे कियो रे कौण गंजे नर खेत', परन्तु भगवान सिर पर किसलिए अलग? सर्वज्ञ परमात्मा दूसरे देवों से, दूसरे गुरु से, दूसरे तत्त्वों से इस तत्त्व का स्वरूप सच्चा कहनेवाले हैं - ऐसा पृथक् क्यों किया? हैं ? ये भिन्न क्यों कहलाये? कि दूसरे की अपेक्षा इनका अलग.... दूसरे ऐसा कहते हैं, दूसरे भेद से कहते हैं, अकेले को कहते हैं। सात तत्त्वसहित, निश्चयसहित के व्यवहार को कहते हैं - ऐसे भगवान का ज्ञान मिलानवाला रहे बिना भगवान सिर पर धारे नहीं जा सकते। कौन मालिक? तुझे ऐसा है कुछ? भगवान अकेले धार तो वे छह द्रव्य में आते हैं – ऐसा कहते हैं, लो! भगवान भी तूने यदि (धारे हों तो वे व्यवहार से हैं)। जिण उत्तिया ववहारे यह भगवान जगत् में हैं, देव-गुरु-शास्त्र हैं। उनका ज्ञान व्यवहार से ज्ञान है, निश्चय से नहीं। समझ में आया?
निश्चय में तो स्व चैतन्यमूर्ति भगवान अखण्डानन्द प्रभु पूर्ण शुद्ध एकरूप चैतन्य है, उसका आश्रय करके सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, उसे यहाँ निश्चय कहा जाता है। निश्चय में कहीं सत्य फल आना चाहिए। व्यवहार में जानने का आता है, उसमें क्या? राग आवे, उसमें कुछ सत्यफल नहीं आता। समझ में आया? ऐसी बहुत न्याय से बात रखी है। भाषा कैसी कही? यह छह द्रव्य का कथन भगवान ने कहा है, उसे भगवान ने व्यवहार कहा है, हाँ! भगवान ने यह कहा और भगवान ने इसे व्यवहार कहा, हैं? अन्य गड़बड़ करते हैं न? भाई! दूसरे.... इसमें से गोम्मटसार का अर्थ भी मिथ्या निकालते हैं। ऐसा होता है? निकालते हैं न, पता है न। यह लिखा उसमें... यह तो भेदवाली बात है।
एकरूप भगवान आत्मा निर्विकल्प वस्तु, आत्मा निर्विकल्प है। समझ में आया? ऐसे आत्मा का अन्तर आश्रय निर्विकल्प दृष्टि से करे, तब उसे निश्चय कहा जाता है। यह सब व्यवहार है, व्यवहार जानने योग्य है, उसका ज्ञान करने योग्य है, वहाँ खड़े रहने योग्य नहीं है।