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________________ २६८ गाथा-३५ पर्याय इतना आत्मा एक समय की सामर्थ्यवाला.... ऐसा अन्य दर्शन में कहीं नहीं होता। समझ में आया? और एक समय में छह द्रव्य ज्ञात हों, तथापि छह द्रव्य का निषेध, एक समय की पर्याय जाने उनका निषेध। आहा...हा...! समझ में आया? एक समय में भगवान पूर्णानन्द प्रभु अभेद निश्चय का आश्रय, वह निश्चय कहा जाता है, वह सत्यदृष्टि कहलाती है। व्यवहार का ज्ञान करने योग्य है; व्यवहार आश्रय करने योग्य नहीं है। भेद का संवर, निर्जरा, मोक्ष का आस्रवतत्त्व, पुण्य -पाप का या अजीव का आश्रय करने योग्य नहीं है परन्तु उन्हें जानने योग्य है। कहो, समझ में आया? इन्होंने (अर्थ करनेवाले ने) तो पहले कहा है कि साधक को पहले जानना चाहिए। शास्त्र कितने – ऐसा कहा सब। गोम्मटसार में कहा है देखो! कि छह द्रव्य, पंचास्तिकाय.... अत्थाणं जिणवरावइदाणं भगवान द्वारा कथित उन्हें । देखो! आणाए अहिगमेण भगवान की आज्ञा से छह द्रव्य जानना। अहिगमेण और अपने ज्ञान से, युक्ति से जानना। एक-एक परमाणु में अनन्त गुण हैं। इन्होंने स्पष्ट कहा है। दूसरे कहें इसे समकित कहना। यह कहे कि व्यवहार है। यह बात सत्य है। समझ में आया? इस श्लोक में आया या नहीं? ववहारे जिण उत्तिया छह द्रव्य की श्रद्धा, व्यवहार है; नव तत्त्व की श्रद्धा, वह व्यवहार है; नव तत्त्व और छह द्रव्य का ज्ञान, वह व्यवहार है, फिर उसके साथ लागू करना चाहिए न? उसमें है वह, उसका अर्थ कि भेदवाला है या नहीं? भेद है या नहीं? छह द्रव्य पंचास्तिकाय... समझ में आया? फिर इतने की स्वयं साधारण व्याख्या की है। कहते हैं कि निश्चय से देखें तो भगवान पूरा निर्मलानन्द पर से पृथक् दिखता है, और निश्चय से देखें तो एक-एक रजकण भी पर के सम्बन्ध से रहित द्रव्य.... परमाणु पृथक् दिखता है। समझ में आया? पृथक् दिखता है का अर्थ कि अभेद की दृष्टि होने पर परमाणु भी पृथक् द्रव्य है – ऐसा इसे ज्ञान में आता है। समझ में आया? यह ३५ वीं गाथा (पूरी) हुई। अपने को यहाँ सार-सार लेना है न? पाठ के भाव में से... बाकी सब बहुत लिखा है। प्रश्न – कितना ही तो मैल बिना का।
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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