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गाथा - ३६
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सब पदार्थों में चेतनेवाला एक जीव ही है
सव्व अचेयण जाणि जिय एक्क सचेयण सारू ।
जो जाणेविण परममुणि लहु पावइ भवपारू ॥ ३६॥ शेष अचेतन सर्व हैं, जीव सचेतन सार ।
मुनिवर जिनको जानके, शीघ्र हुये भवपार ॥ ३६॥
अन्वयार्थ – (सव्व अचेयण जाणि) पुद्गलादि सर्व पाँचों द्रव्यों को अचेतन या जड़ जानो (एक्क जिय सचेयण सारू) एक अकेला जीव ही सचेतन है, व सारभूत परम पदार्थ है ( परम मुणि जो जाणेविण लहु भवपारू पावइ) जिस जीव तत्त्व को अनुभव करके परम मुनि शीघ्र ही संसार से पार हो जाते हैं।
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सब पदार्थों में चेतनेवाला एक जीव ही है। लो निकाला इसमें से।
सव्व अचेयण जाणि जिय एक्क सचेयण सारू ।
जो जाणेविण परममुणि लहु पावइ भवपारू ॥ ३६ ॥
भगवान सर्वज्ञदेव त्रिलोकनाथ परमेश्वर कहते हैं कि हे जीव ! पुद्गल आदि सर्व पाँचों ही द्रव्यों को..... एक परमाणु धर्मास्ति - अधर्मास्ति, आकाश, काल अचेतन हैं। समझ में आया? यह शरीर, अन्दर कर्म, यह वाणी, यह सब अचेतन है- जड़ है; इनमें चैतन्यभाव नहीं है। चैतन्यभाव सर्वज्ञ प्रभु आत्मा में है, जिसमें चैतन्यभाव है, वह सर्वज्ञस्वभावी आत्मा है। समझ में आया ? सव्व अचेयण जाणि भगवान आत्मा के अतिरिक्त कर्म के रजकण, शरीर, वाणी, यह दाल, भात, सब्जी, मकान, सब जड़ अचेतन हैं। इनमें चैतन्य का अस्तित्व नहीं है । और इनसे बने हुए पदार्थों को अचेतन अथवा जड़ जानो ।
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ये सब
एक्क जिय सचेयण सारु भगवान आत्मा सचेतन है । देखो, उस व्यवहार का ज्ञान कराया। अब, जिसमें चेतनपना भरा है, चेतनपना भरा है अर्थात् जिसमें ज्ञ-स्वभाव