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गाथा-३४
तो रहित है। समझ में आया? ऐसे आत्मा की – स्वभाव की आत्मा द्वारा श्रद्धा और स्वभाव की स्थिरता कर । अल्प काल में मुक्ति हो, वह पन्थ मोक्ष का है। बीच में व्यवहार आवे उसे छोड़ता जा, छोड़ता जा; आदर नहीं करता जा, उसकी मदद लेकर आगे बढ़े, ऐसा नहीं - ऐसा कहते हैं, देखा? आहा...हा...! फिर बहुत बात (ली है)। लो, यह ३४ (गाथा पूरी) हुई।
अब, व्यवहार में नौ पदार्थों का ज्ञान होता है - ऐसा कहते हैं । इस एक की बात की न आत्मा की.... आत्मा अनन्त गुण का पिण्ड है, उसका भान, उसकी श्रद्धा, उसका ज्ञान, वह मोक्ष का मार्ग है। अब ऐसे स्थान में इसे भगवान ने छह द्रव्य कहे, छह द्रव्य भगवान ने कहे.... अनन्त आत्माएँ, अनन्त परमाणु, असंख्य कालाणु, धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाश (एक-एक) इनके अन्तर भेद नौ। यह नौ तत्त्व व्यवहाररूप है, उनका इसे ज्ञान करना चाहिए क्योंकि वीतरागमार्ग के अतिरिक्त ऐसे नौ तत्त्व अन्य में नहीं होते हैं। समझ में आया? देखो, इस गाथा में ऐसा कहते हैं, हाँ! व्यवहार में नौ पदार्थों का ज्ञान आवश्यक है अर्थात् होता है। प्रयत्न से, कहा है न? प्रयत्न से जानना। उसका कारण है कि आत्मा के ज्ञान की एक समय की पर्याय उन छह द्रव्य को जानने की सामर्थ्य रखती है। छह द्रव्य जो भगवान ने कहे – अनन्त आत्माएँ, अनन्त परमाणु... परमाणु, यह रजकण, पॉइन्ट, यह धूल... इससे असंख्य कालाणु इन सबको (जाने ऐसी) आत्मा के गुण की एक पर्याय सामर्थ्य रखती है। परसन्मुखवाली एक पर्याय सामर्थ्य रखती है। यह इसे पर्याय का ज्ञान यथार्थ होने को इसे नवतत्त्व का ज्ञान यथार्थ होना चाहिए, उनमें से छाँटकर अकेले आत्मा का ज्ञान करे, उसका नाम मोक्षमार्ग है। इसके लिए यह नवतत्त्व की व्याख्या करेंगे।
(श्रोता : प्रमाण वचन गुरुदेव!)
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