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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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में मुक्ति होगी, दूसरा कोई उपाय नहीं है। यह पुण्यभाव तुझे मदद करे – ऐसा नहीं है। अटकानेवाला बीच में आता है – ऐसा कहते हैं, इसलिए छोड। आहा...हा...! ऐसी बातें जगत को जमना कठिन है, भाई ! समझ में आया?
आत्मा को-आत्मा द्वारा.... ऐसा है न? 'अप्पा अप्पड़' है न? आत्मा, आत्मा द्वारा.... अर्थात् क्या? भगवान आत्मा अनन्त आनन्द और शुद्ध चैतन्य की मूर्ति, उसे आत्मा, आत्मा द्वारा.... आत्मा द्वारा अर्थात् अन्य व्यवहार द्वारा नहीं, दया-दान-व्रत, कषाय के मन्द (परिणाम) वह आत्मा नहीं है; वह तो अनात्मा, आस्रवतत्त्व है। आत्मा आत्मा के द्वारा... भगवान आत्मा अपने निर्विकल्प-रागरहित श्रद्धा-ज्ञान द्वारा परभाव छोडकर.... यह दया, दान, व्रत के परिणाम बन्ध के कारण हैं, उन्हें छोड़कर – ऐसा जिनवर कहते हैं, तो वह शिवपुर को पाता है, वरना मोक्ष में नहीं जाता; चार गति में भटकेगा। पहले कहा था वह । (गाथा) ३३ में कहा था न? कि पुण्य से स्वर्ग में, पाप से नरक में, और दोनों को छोड़े तो शिववास में (जाता है)। उस शिववास की यह विशेष व्याख्या की है। कहो, समझ में आया?
‘लाख बात की बात एक निश्चय उर आणो;' छहढाला में आता है या नहीं? भगवान आत्मा.... उसका निधान चैतन्य रत्नाकर प्रभु आत्मा है, उसमें अनन्त रत्न, आनन्द और शान्ति के भरे हैं। भगवान जाने, उसकी धूल में भरा इसे दिखे और यह दिखे नहीं। कहो, हरिभाई! पाँच-दस लाख रुपये, पचास लाख हो वहाँ तो आहा...हा...! मैं चौड़ा गली सँकरी।
मुमुक्षु – कभी देखा न हो तो फिर ऐसा ही होता है न?
उत्तर – धूल में भी देखा नहीं... पूरी दुनिया दिखे इसमें तेरे बाप को क्या आया? समझ में आया? ऐ... मोहनभाई! अन्य पैसेवाले सब हैं न? कहते हैं न – वाला है न सब? कितनेवाला? पैसेवाला, लड़केवाला, स्त्रीवाला, इज्जतवाला, मकानवाला, अमुकवाला कितने 'वाला' लगे हैं इसे? एक वाला (विशेष प्रकार का रोग) होवे तो खा जाये, वह आता है न पैर में? वाला, हैं? कितने वाला?
यहाँ तो कहते हैं भगवान रागरहित, देहरहित, मनरहित, वाणीरहित; वाला नहीं यह