________________
व्यवहार में नौ पदार्थों का ज्ञान आवश्यक है छहदव्वह जे जिण कहिया णव पयत्थ जे तत्त। ववहारे जिणउत्तिया ते जाणियहि पयत्त ॥ ३५॥ जिन भाषित षट् द्रव्य जो, पदार्थ नव अरु तत्त्व।
कहा इसे व्यवहार से, जानों करि प्रयत्न॥ ३५॥
अन्वयार्थ – (जिण जे छहदव्वह णव पयत्थ जे तत्त कहिया) जिनेन्द्र ने जो छह द्रव्य, नौ पदार्थ और सात तत्त्व कहे हैं (ववहारे जिणउत्तिया) वे सब व्यवहारनय से कहे हैं (पयत्त ते जाणियहि) प्रयत्न करके उनको जानना योग्य है।
वीर संवत २४९२, आषाढ़ शुक्ल ३,
गाथा ३५ से ३८
मंगलवार, दिनाङ्क २१-०६-१९६६ प्रवचन नं.१४
यह योगसार है। योगसार अर्थात् आत्मा के मोक्ष का उपाय । उसमें सार क्या है ? - यह बताते हैं। समझ में आया? उसमें ३४ गाथा हो गयी। अब, ३५ वीं।
छहदव्वह जे जिण कहिया णव पयत्थ जे तत्त।
ववहारे जिणउत्तिया ते जाणियहि पयत्त ॥ ३५॥
क्या कहते हैं ? जिनेन्द्रदेव ने..... जिण कहिआ - ऐसा है न? जिनेन्द्र परमेश्वर ने छह द्रव्य, नौ पदार्थ और सात तत्त्व कहे हैं। सर्वज्ञ परमेश्वर, जिन्हें एक समय में तीन काल-तीन लोक का ज्ञान, आत्मा में प्रकाशमान हुआ है – ऐसे भगवान ने छह द्रव्य कहे हैं, वे छह वस्तुएँ; उनके नव तत्त्व-पदार्थ और सात तत्त्व, उन्हें व्यवहार से जिण उत्तिया - ऐसा शब्द पड़ा है। भगवान ने उन्हें व्यवहार से कहा है - ऐसा कहते हैं। समझ में आया?