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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
स्वर्ग प्राप्ति हो पुण्य से, पापे नरक निवास ।
दोऊ तजि जाने आतम को, पावे शिववास ॥ ३२ ॥
अन्वयार्थ - ( जिउ पुण्णिं सग्ग पावइ) यह जीव पुण्य से स्वर्ग पाता है ( पावइ णरयणिवासु) पाप से नरक में जाता है (वे छंडिवि अप्पा मुणइ ) पुण्य-पाप दोनों से ममता छोड़कर जो अपने आत्मा का मनन करे (तउ सियवासु लब्भइ ) तो शिव महल में वास पा जावे ।
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३२; पुण्य पाप दोनों संसार है।
पुणं पावइ सग्ग जिउ पावइ णरयणिवासु ।
वे छंडिवि अप्पा मुणइ तउ लब्भइ सिववासु ॥ ३२ ॥
पुण्ण पावइ सग्ग यह शुभभाव - दया, दान, व्रत, भक्ति करे तो पुण्य से स्वर्ग मिले; यह धूल; स्वर्ग की, देव की धूल । समझ में आया ? और पावड़ णरयणिवासु यदि पाप करे तो नरक में जाए। नीचे नरकगति है। पाप करे तो नरक में जाए, पुण्य करे तो स्वर्ग में जाए। समझ में आया ? शुभभाव ऐसे व्रत, तप, नियम, शील, संयम कहा न ? ऐसे भाव करे तो स्वर्ग में जाए। यह सेठ पाँच-दस करोड़ के, इसके कारण जरा उजला दिखे, परन्तु है सब धूल और धूल, वहाँ भी । हैं ? दो-पाँच करोड़वाले सेठ उजले लगते हैं न? आहा... हा...! फूले-फूले समाते नहीं, आगे बिठायें। इन्हें कहाँ पैसा है ? इसके लड़के के पास है, इसे कहाँ है? यह तो यहाँ रसोई का अधिकारी है, इसलिए मुँह के आगे है। ऐ...ई... ! सेठ तो इसका लड़का सेठ है। उसके पास करोड़ रुपये हैं, लड़के के पास दो करोड़ हैं। इसे तो दो लड़के थोड़ा हिस्सा देते होंगे। कहते थे, बापूजी का हिस्सा है। दोनों लड़के अलग हो गये हैं। एक के पास दो करोड़ और एक के पास एक करोड़ है, इन भाईसाहब के। यह उनका पिता है। लड़कों का पिता 'पूनमचन्द मलूकचन्द', मुम्बई - दो करोड़ रुपये । वह यह मलूकचन्द । इनके पिता यह छोटालाल । धूल में भी नहीं, सब दुःखों से पीड़ित हैं, हैरान.... हैरान..... हैं I