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गाथा-३२
वे पोपटभाई गये नहीं अभी? कहा नहीं? कैसा? 'गोवा' । 'शान्तिलाल खुशालदास' अपने दशाश्रीमाली, हाँ! चालीस करोड़ रुपये नगद। पचास हजार की एक दिन की आमदनी है। धूल में भी हर्ष नहीं, हैरान... हैरान बेचारा पूरे दिन । हैं? यह कहते हैं कि पुण्य से स्वर्ग मिले या धूल, सेठपना मिले। इसके पुरुषार्थ से नहीं, हाँ! यह जानता है कि मैंने पुरुषार्थ किया, इसलिए हमें अच्छा मिला। इसने धूल में भी मेहनत करके मर जाए तो पाँच हजार भी नहीं मिलते और दूसरे को करोड़ों रुपये सामने आकर भटकते हैं । यह तो पूर्व के पुण्य के रजकणों का उदय आवे तो गोटी जम जाती है। यह मूढ़ जानता है कि मैंने मेहनत की, इसलिए मिला। मूढ़ता में बड़ा बैल है । ऐ....... ! आहा...हा...!
आचार्य भगवान कहते हैं कि बापू! पुण्य करेगा तो यह धूल मिलेगी, ले! स्वर्ग और सेठ। यह पाप करेगा तो णरयणिवासु। हिंसा, झूठ, चोरी, भोग, वासना, काम, क्रोध, महा विषय-वासना, विकार, परस्त्री लम्पटपना, शराब (पीना), माँस खाना - ऐसे भाव होंगे तो नरक में जाएगा। छंडिदि परन्तु दोनों को छोड़कर आत्मा के श्रद्धा-ज्ञान
और चारित्र करेगा तो मोक्ष जाएगा। दो (पुण्य-पाप) के द्वारा मोक्ष नहीं जाया जाता। इसकी बात करेंगे।
(श्रोता : प्रमाण वचन गुरुदेव!)
दिगम्बर साधु पात्र रखते ही नहीं.... जिसे मुनिपने की संवरदशा होती है, उसे वस्त्र-पात्र ग्रहण करने की वृत्ति हो ही नहीं सकती और जिसे वस्त्र-पात्र की वृत्ति हो, उसे मुनिपने की संवरदशा नहीं हो सकती। फिर भी जो वस्त्र-पात्रवाले को मुनि मानता है तो उसकी प्रत्येक तत्त्व में भूल है। भाई ! सत्य बात तो ऐसी है। क्या यह किसी का कल्पित मार्ग है ? नहीं; यह तो वीतराग का मार्ग है, वस्तुस्वरूप ऐसा है।
प्रश्न - क्या दिगम्बर साधु पात्र रखते हैं?
उत्तर - दिगम्बर साधु पात्र रखते ही नहीं, वे पानी का कमण्डलु रखते हैं, तथापि वह पानी पीने के लिए नहीं होता। पीने के लिए वह पानी हो ही नहीं सकता, वह तो शौच के लिए है।
- पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी