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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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जाने, शुद्ध उपयोग प्रगट न करे, तब तक उसके सब व्यवहार व्रतादि व्यर्थ... व्यर्थ हैं। समझ में आया?
उसमें (३० वीं गाथा में) आया था न? यह मुणइ वय। तो फिर (ऐसा अर्थ हुआ कि) जहाँ उग्र शान्ति (और) अनुभव है, वहाँ व्रत, नियम कहा परन्तु नीचे अकेले व्रत (वह) धर्म और ऊपर अनुभव धर्म, भाई ! इसमें ऐसा नहीं आया? आया या नहीं? ३०वीं गाथा में ? यह दो इकट्ठे हैं न? तो भी ऐसा कहा णिम्मल अप्पा मुणइ वयसंजमु संजुत्तु - ऐसा कहा। दो साथ में ऐसा कहा.... ऐसा नहीं कहा कि व्रत, तप का पहला धर्म और निर्मल अनुभव का बाद का धर्म । हैं ? आहा...हा...! ऐसा होता ही नहीं। परन्तु कितने ही पण्डित कहते हैं। अभी के सीखे हुए (- ऐसा कहते हैं)। अरे ! भगवान ! बाढ़ बैल को खाती है, उस बैल को कहाँ जाना? समझ में आया? बाढ़ बैल को खाये, बैल चढ़ने के लिए बाढ़ का सहारा ले, बैल चढ़ने के लिए बाढ़ का सहारा ले बाढ़ खा जाये बैल को - ऐसे उपदेशक कैसे? लाओ. हम सनते हैं. कछ कहे. वही परा सब उलटा....सननेवाले को - चढ़ने का बैल जाये कहाँ वह ? वे बेचारा कहे उस प्रकार, जय पण्डितजी ! सच्ची बात तुम्हारी। रतनलालजी ! ऐसा ही होता है। आहा...हा...!
अरे ! बाढ़ बैल को खाये। दामोदरभाई ने कहा था जैतपुर । वे साधु थे न? वेदान्त की श्रद्धा, हाँ! वेदान्त की। लींबड़ी... फिर इन्हें जैन की श्रद्धा अवश्य न? वस्तु भले फेरवाली दृष्टि थी। इसलिए वह कहने लगा, यह साधु सुधरा हुआ दिखता है न? बड़ा सेठ था न? दशाश्रीमाली में दस लाख रुपये पचास वर्ष पहले किसी को नहीं थे। वह यहाँ दामनगर था, और स्वयं सेठ व्यक्ति जरा नरम जैसा, दूसरों को ऐसा कि मेरे जैसे बात इसे रुचेगी। निश्चय की ऐसी वेदान्त की बात करने लगा, सेठ ऐसा है, सेठ ऐसा है। सेठ ने सुना, हाँ! फिर बोला, अरे... महाराज! अरे! बाढ़ बैल को खाये, बैल को कहाँ जाना? होशियार था.... अरे ! ऐसे जैन के वेश में रहकर मुँहपट्टी में रहकर तो वेदान्त की बात करो? इन लोगों – जैनों को कहाँ जाना? बेचारे दु:खी, तुम जानो कि यह मार्ग होगा, हाँ! कर देंगे... अरे! तुम क्या करते हो, पता नहीं पड़ता, कुछ पता नहीं पड़ता। फिर सिर पर बैठा वह..... कान्तिभाई!
यह बहुत वर्ष की बात है, हाँ! यह तो बहुत वर्ष की बात है। जैतपुर गये थे, सेठ