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गाथा - २६
को वेदे, चेतना को करे - ऐसा चैतन्यस्वरूप है। राग को करे या हर्ष को भोगे – यह वस्तुस्वरूप ही नहीं है। संसार के भाव को करे या संसारभाव को - हर्ष से वेदे - यह वस्तु, यह आत्मा ही नहीं है। समझ में आया ? अतीन्द्रिय भगवान आत्मा.... उसे आत्मा कहते हैं कि जिसमें अकेली चेतना भरी है। वह तो चेतने का, जानने का, देखने का, वेदने का, अनुभव करने का काम करे - ऐसा यह आत्मा है। ऐसे आत्मा को तू मुण - जान । राग को, अमुक को करे, वह आत्मा नहीं; वह तो अनात्मा है। समझ में आया ?
व्यवहार के रत्नत्रय के विकल्प उठें या करे, या वेदे, वह आत्मा नहीं, वह आत्मा नहीं। आत्मा ज्ञानमूर्ति प्रभु, वह ज्ञान में जमकर, ज्ञान का अनुभव करे, ज्ञान का वेदन करे, ज्ञान में ज्ञान की एकाग्रतापने का अनुभव करे ऐसा यह आत्मा है । कहो, समझ में आया ?
मुमुक्षु - इसी प्रकार सुना करें ऐसा लगता है ।
उत्तर - ऐसा ? आहा... हा... ! यहाँ तो कहते हैं कि बोले, वह आत्मा नहीं । मुमुक्षु - सुने वह ?
उत्तर – सुने वह आत्मा नहीं। आहा... हा...! अरे...! भगवान ! विकल्प से सुने, वह आत्मा नहीं। समझ में आया ?
भगवान आत्मा चेतनस्वरूप (है), वह तो चेतने का काम, वेदने का काम, जानने का काम करे, उसे आत्मा कहते हैं और उस आत्मा को मुण - अनुभव... उस आत्मा का अनुभव कर, वह शिवलाभ का हेतु है । पैसे के लाभ का और धूल के लाभ का दुनिया प्रयत्न करती है । निरुपद्रव कल्याणमूर्ति मुक्तपर्याय के लाभ के लिये यह एक ही उपाय है; दूसरा उपाय नहीं । आहा... हा... ! बहुत सार-सार भरा है।
बुद्ध वह तो बुद्ध है, बुद्धदेव है, सत्यबुद्ध है, वह सच्चा बुद्ध है। समझ में आया ? यह आत्मा भगवान सत्यबुद्ध है, यह इसका सत्यपना, इसका बुद्धपना जानना । वह स्वयं देव है, सत्यबुद्ध स्वयं देव है। तू ऐसे देव को जानकर अनुभव (कर) । आहा...हा...! समझ में आया ? ऐसा देव है, इसलिए तू जानकर दूसरे को कुछ कहना - ऐसा यह आत्मा